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________________ परस्त्री-आसक्ति से सर्वनाश : १९३ जाकर गर्म तवे पर पानी के छींटे देने लगी। कामुक दूकानदार अपने भाग्य को सराह रहा था, तभी सेठ ने द्वार खटखटाया। कामुक ने पूछा-"कौन है ?" सेठानी--"ये तो घर वाले सेठजी ही हैं।" सुनते ही उसका रोम-रोम काँप उठा । बोला-"तुम तो कहती थीं कि वे रात को नहीं आते। हाय ! मुझे कहीं छिपा । फिर द्वार खोलना।" सेठानी बोली-"मेरे घर में छिपाने जैसा कोई स्थान नहीं है। सिर्फ दो-तीन कमरे ही हैं।" कामुक-"कुछ भी कर । मुझे छिपने का कोई उपाय जल्दी बतला।" सेठानी-“एक उपाय है । मेरे यहाँ एक नौकरानी आटा पीसने के लिए प्रतिदिन आया करती है, उसकी पुरानी गन्दी घाघरी और ओढ़ना खूटी पर टंगा हुआ है । उसे पहनकर चक्की चलाने लग जाओ। इससे सेठ समझेंगे कि काम करने वाली बाई आटा पीस रही है।" ___ लाचार होकर दुकानदार ने अपने सूटबूट निकालकर नौकरानी के गंदे कपड़े पहन लिये । लंबा घूघट तानकर चक्की चलाने लगा। इधर सेठ गर्म हो गया। सेठानी ने द्वार खोला तो सेठ ने कहा--"आज तबियत ठीक नहीं है। सुबह कुछ खाया नहीं गया। अभी कुछ रुचि हुई तो चला आया।" सेठानी ने सेठ की रुचि के अनुसार मूंग की दाल और फुलके बनाये । इधर कामी अभ्यास न होते हुए भी विवश होकर चक्की चला रहा था। सेठ ने ज्यों ही रोटी का एक ग्रास लिया, गुस्से में आकर कहा-"कितनी किरकिर हैं। यह आटा किसने पीसा है ? गेहूँ के साथ कंकड़ भी पीस डाले हैं।" ___ सेठानी-“यह नई नौकरानी है । इसे कितनी ही बार कह दिया कि तू गेहूँ पीसने से पहले अच्छी तरह साफ कर लिया कर । परन्तु यह ध्यान ही नहीं देती।" सेठ खड़ा हो गया और जहाँ वह कामी चक्की चला रहा था, वहाँ जाकर नौकदार जूतों से तडातड़ पीटने लगा । सेठानी ने बीच में पड़कर न छुड़ाया होता तो वह उसका कचूमर ही निकाल देता । सेठ ने कहा-"अब मैं रोटी बिलकुल नहीं खाऊँगा । लाओ, थोड़ी-सी गर्म दाल ही पी लू।" यों एक घूट दाल की ली, उसमें भी धूल व कंकड़ मिश्रित होने की शिकायत की। गुस्से में आकर दाल की कटोरी फेंकते हुए कहा - "कुछ देखती ही नहीं हो ! क्या खाने का आनन्द है !" सेठानी बोली-“मैंने इस छोकरी से दाल साफ करने को कहा था, किन्तु इसने कुछ ध्यान ही नहीं दिया दिखता है ।" इतना सुनते ही सेठ फिर उबल पड़ा और उस कामी के पास पहुँचकर बोला- "आज इसको अक्ल ठिकाने लाकर ही छोड़गा।" यों कहकर उसे मुक्कों और लातों से इतना पीटा कि उसे भी छठी का दूध याद आ गया । कामी मन मसोसकर चुपचाप सहन करता रहा । सेठानी ने फिर सेठ को शान्त करके एक ओर भेजा और उस लम्पट से कहा-"घाघरी पहने ही यहाँ से जल्दी भाग जा, मैं द्वार खोल देती हूँ वरना सेठ फिर पीटेगा।" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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