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________________ १६२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ लोग उस महिला को उससे छुड़ाने के लिए आ गए, मगर उसमें इतना पैशाचिक बल आ गया कि चारों ओर से पिटपिटकर वह लहूलुहान हो गया, पर जब तक उसकी इच्छा पूर्ण न हो गई तब तक उस स्त्री को नहीं छोड़ा । आखिर स्त्री से हटते ही उसने वहीं दम तोड़ दिया । यह था, परस्त्रीगामी कामान्ध का शरीर से, दस प्राणों से और आयुष्य - बल से सर्वनाश का ज्वलन्त उदाहरण ! सामाजिक दृष्टि से सर्वनाश - परस्त्री-सेवन सामाजिक दृष्टि से सर्वनाश का कारण है । सामाजिक जीवन में मनुष्य सम्मान के साथ जीना चाहता है, वह चाहता है, लोगों में मेरी प्रतिष्ठा हो, परन्तु परस्त्रीगामी अपनी कीर्ति, प्रतिष्ठा और यश को पहले से ही लुटा देता है । समाज में उसके साथ कोई बहन-बेटी का लेन-देन नहीं करना चाहता । कई बार बहन-बेटियाँ स्वयं उसके यहाँ आना-जाना बन्द कर देती हैं । वह बीमार हो, रोगग्रस्त हो, विपद्ग्रस्त हो अथवा किसी कारणवश चिन्तित हो तो भी प्रायः लोग उसकी सेवा, सहायता या उसके साथ सहानुभूति करना नहीं चाहते । प्रायः अपनी जाति, कुटुम्ब - कवीले या समाज से उसका सम्बन्ध कट-सा जाता है | वह अलग-थलग अकेला पड़ जाता है। वह विपन्न, दीन-हीन, मनमलिन-सा, तनछीन-सा बनकर जीता है । परस्त्रीगामी पुरुष की कई बार बहुत ही दुर्दशा होती है, जिस स्त्री को वह अपने जाल में फँसाना चाहता है, वही सच्चरित्र स्त्री उसे अच्छा सबक सिखा देती है । एक धर्मात्मा साहूकार की धर्मपत्नी अपने पीहर से ससुराल आती, तब मार्ग में एक दुकानदार उसे देखकर कभी खंखारता, कभी कंकड़ फेंकता, यों जब-तब वह छेड़खानी करता रहता था । और कोई रास्ता न होने से सेठानी को उसी रास्ते से अपने ससुराल के घर जाना पड़ता था । दूकानदार की अधमता पर उसे क्षोभ होता, पर अपनी इज्जत का खयाल करते हुए उसने युक्ति से दिन उसने अपने पति के सामने इसका जिक्र किया। पति आग-बबूला होकर उसे पीटने के लिए उतावला हो रहा था, किन्तु पत्नी ने गुपचुप प्रतिकार करने की योजना पति को समझा दी । ऐसा ही करने का तय हो गया । काम लेने की सोची । एक एक दिन जब वह आ रही थी तो दूकानदार ने छेड़छाड़ की । अतः उसने कहा - "आप क्यों रोजाना ऐसा करते हैं ? आज रात को नौ बजे आ जाइए । सेठजी तो रात को भोजन करने और सोने घर पर आते ही नहीं ।" यह सुनकर दूकानदार फूला न समाया । वह रात को नौ बजे वस्त्रादि से सजधजकर कुछ इत्र, तेल, फुलेल आदि प्रसाधन सामग्री भेंट देने को लेकर पहुँचा । द्वार खटखटाया। सेठानी ने द्वार खोलकर उसे अन्दर ले लिया । बिठाया, स्वागत किया । भोजन का आग्रह किया । पहले तो उसने आनाकानी की, लेकिन फिर स्वीकार किया । उधर सेठानी रसोईघर में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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