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________________ परस्त्री-आसक्ति से सर्वनाश : १८३ भी अपने कामजाल में फंसा लेते हैं । उनके पतियों को जब पता लग जाता है, तब या तो वे उन्हें घर से निकाल देते हैं, या फिर वे उन्हें जान से मार डालते हैं, अथवा उनसे विरक्त हो जाते हैं, और उनसे विरक्त होकर दूसरी के जाल में फँस जाते हैं। ६. आर्थिक विवशता-आर्थिक विवशता भी परस्त्रीसेवन का मार्ग खुला कर देती है। परस्त्रीलम्पट पुरुष कई स्त्रियों की आर्थिक विवशता से लाभ उठाते हैं । गरीब, अभावग्रस्त, विपन्न एवं संकटग्रस्त महिला को कुछ आर्थिक सहायता देकर उन्हें अपने चंगुल में फँसा लेते हैं। धनवानों, सत्ताधीशों या विदेशियों को ऐसी खूबसूरत स्त्रियों को पैसा देकर अपने वश में करना बहुत आता है। कई बार वे किसी सुन्दर स्त्री को देखकर अपने यहाँ नौकर रख लेते हैं। फिर उसके साथ अनुचित सम्बन्ध रखकर गुप्त रूप से अनाचार-सेवन करते रहते हैं। इससे परस्त्रीसेवन को अनायास ही उत्तेजना मिलती रहती है ।। मैंने एक जगह पढ़ा था कि एक सेठ ने एक निर्धन किन्तु सुन्दर स्त्री को अपने यहाँ रसोई बनाने के काम पर रख लिया । सेठ की स्त्री को मरे अभी कुछ ही महीने हुए थे । घर में लड़के, बहू सब थे, परन्तु कामुक सेठ का मन वश में नहीं रहता था। इसलिए गुप्त रूप से उस नौकरानी के साथ व्यभिचारलोला करते थे। ____ कई बार गरीब आदमी आर्थिक तंगी के कारण अपनी स्त्री से इस प्रकार की वेश्यावृत्ति कराकर उससे अपनी आजीविका चलाता है। समाचारपत्र में पढ़ा थाजोधपुर रियासत का एक गरीब ब्राह्मण, अपनी निर्धनता के कारण अपनी स्त्री से स्वयं वेश्यावृत्ति कराता था । पुरुषों से बात पक्की करके कुट्टनखानों में या उस पुरुष के ही स्थान पर स्वयं अपनी स्त्री को ले जाता था। उसका धन्धा ही यह था । हाँ, तो आर्थिक विवशता भी कामीपुरुषों को परस्त्रीसेवन के लिए ललचाती है । आर्थिक विवशता के कारण व्यक्ति धर्म-कर्म सबको ताक में रख देता है। ७. अश्लील साहित्य का प्रचार-आजकल बाजारों में अश्लील घासलेटी साहित्य की बाढ़ आ गई है। गंदे उपन्यास, इश्क के गाने, फिल्मी गीत तथा अन्य अश्लील कामोत्तेजक कहानियाँ या साहित्य सहवास के लिए युवक से लेकर प्रौढ़ तक को, युवती से लेकर प्रौढ़ा तक को उकसाता है। खासकर विद्यार्थी युवकों, शिक्षितों और प्रौढ़ों को जवानी में अश्लील साहित्य का प्रचार दीमक का काम करता है। वे परस्त्रीसेवन के मार्ग पर एक बार पैर धरते हैं, फिर सदा के लिए भ्रष्ट हो जाते हैं । अतः अश्लील साहित्य का प्रचार भी परस्त्रीसेवन को उत्तेजित करता है। ८. गन्दे नाटक-सिनेमा का वातावरण-सिनेमा के पर्दे पर नर्तकियों तथा सिनेमा तारिकाओं के अश्लील नाच-गान तथा कामवासना भड़काने वाले कुकृत्य देख कर तथा अश्लील नाटक देखकर परस्त्री-सेवन की गंदी भावना की लहर प्रायः पुरुषों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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