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________________ १८२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ स्त्रियाँ अपना शील लुटाने को तैयार हो जाती थीं । आखिर एक बार उसका भंड। फूटा, तब जाकर लोग सावधान हुए । एक और प्रकार की अज्ञानता भी समाज में प्रचलित है। जिन स्त्रियों के पति बूढ़े, रोगी और गरीब होते हैं, अथवा जो व्यक्ति बुढ़ापे में जवान स्त्री से विवाह करते हैं, या अपनी सुशील स्त्री को किसी कारणवश मार-पीटकर भगा देते हैं, तो वे स्त्रियाँ बहुधा कुमार्ग में फँस जाती हैं । साधारण-सी चीजें - कंघे, सुर्मा, इत्र, केशतेल, वस्त्र या मिठाइयाँ ही उन्हें धर्मपथ से डिगा देती हैं । वास्तव में धर्म का उन्हें कुछ ज्ञान ही नहीं होता । प्रायः स्त्रियाँ स्वभाव से ही भीरु व कोमल होती हैं, एक बार गिर जाने के बाद वे उठ नहीं सकतीं । समाज में कुछ ऐसे रूढ़ रिवाज प्रचलित हैं कि इस प्रकार स्त्रियों की अज्ञानता का लाभ उठाकर उन्हें गिराने वाले पुरुष तो किसी बहाने से अलग हो जाते हैं, लेकिन बेचारी स्त्रियों का भंडाफोड़ हो जाता है तो उनका कहीं ठिकाना नहीं रहता । इस प्रकार उन भोली-भाली स्त्रियों की अज्ञानता के कारण परस्त्री - सेवन धड़ल्ले से चलता है । ४. स्वस्त्री में अत्यासक्ति - यह परस्त्रीगमन के द्वार खोलने का कारण है । बहुधा लोग यह मानते हैं कि अपनी पत्नी के साथ तो चाहे जब और चाहे जितनी बार सहवास करने की छूट है। इसी गलत विचारधारा के कारण अपनी स्त्री चाहे थकी हुई हो, रजस्वला हो, शोकमग्न हो, चिन्तित हो, प्रसव के कारण अत्यधिक दुर्बल हो, रोगिष्ठ हो, परन्तु उसका नरपिशाच पति जबरन उससे सहवास करता है । इस प्रकार के सहवास में अबला स्त्री पुरुष का सामना नहीं कर सकती, फलतः जब-तब पति महोदय अत्यासक्तिपूर्वक अपनी स्त्री पर बलात्कार करते रहते हैं । इससे स्त्री का स्वास्थ्य, सौन्दर्य, लालिमा और बल नष्ट हो जाता है । वह ऊपरा - ऊपरी संतान का बोझ पड़ जाने से असमय में ही बूढ़ी-सी हो उठती है । पति महोदय को अब वह नहीं सुहाती । उनके मन पर काम का भूत सवार होता है और वे इधरउधर किसी पड़ोसी की अथवा अन्य गरीब स्त्री, मजदूरिन, रसोईदारिन या काम करने वाली स्त्री को जरा-सा प्रलोभन देकर फँसा लेते हैं, इस तरह परस्त्रीगमन का द्वार खुल जाता है । ५. स्व- स्त्री के व्यभिचारिणी हो जाने पर - परस्त्रीगमन का पाँचवाँ कारण स्व- स्त्री का व्यभिचारिणी हो जाना है । कई बार चंचल मन की स्त्रियाँ किसी भी सुन्दर युवक को देखकर ललचा जाती हैं, उस समय कई पति उस स्त्री से विरक्त हो जाते हैं और वे दूसरी स्त्री के साथ फँस जाते हैं । विवाहिता स्त्रियों में बहुत कम स्त्रियाँ ऐसी होती हैं, जो पति के रहते अन्य पुरुष को चाहती हों या अन्य पुरुष के चक्कर में फँसती हों । परन्तु कई लम्पट लोग छल, बल और प्रलोभन से विवाहिता स्त्रियों को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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