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१८४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
के हृदय में चल पड़ती है, फिर वह हूक एक न एक दिन कार्य रूप में भी परिणत हो जाती है । सिनेमा में ललनाओं के फैशन और विलास के चलचित्र देखकर भी परस्त्री के प्रति कामुकता की तरंगें तीव्र गति से उठती हैं । ये तरंगें न जाने कितने युवक, प्रौढ़ों और युवतियों को भ्रष्ट करती हैं । अतः अश्लील नाटक सिनेमा भी परस्त्रीसेवन का सत्यानाशी द्वार खोल देते हैं ।
६. एकान्तवास — एकान्त में स्त्री-पुरुष का मिलना, बैठना, बातचीत करना तथा एकान्तशयन एवं सम्पर्क करना भी परस्त्रीसेवन का कारण हो जाता है । कई बार स्त्रीपुरुष का एकान्त - मिलन या एकान्त-शयन भी स्त्री-पुरुष के शीलरक्षण के लिए अग्निपरीक्षा की घड़ी बन जाता है । अंग्रेजी साहित्य में एक कहावत है"Deeds of daikness are committed in the dark."
" संसार में जितने भी अन्याय-अत्याचार या अनाचार के काम हैं, वे सब अन्धेरे में ही किये जाते हैं ।"
अरिष्टनेमि के छोटे भाई रथनेमि जैसे योगी मुनिवर भी एकान्त गुफा मे राजीमती के अंगोपांग और रूपलावण्य को देखकर विचलित हो गये थे । यह तो ठीक था कि सती राजीमती पूर्णतया जागृत थी और उसने जब रथनेमि मुनि को संयम से डिगते देखा तो कुल का स्मरण कराया, अपनी प्रतिज्ञा की याद दिलाई । राजसभा में कालीदास से पूछा गया - " कविवर ! यह बताइए कि काम का जनक कौन है ?
कालीदास घर आये । शास्त्रों को टटोला परन्तु कहीं भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिला । कालीदास की पुत्री अपने पीहर आई हुई थी, पिता के लिए रसोई बनाने हेतु । कालीदास इधर अपने प्रश्न के उत्तर में उलझे हुए थे, उधर भोजन ठंडा हो रहा था । पुत्री के बहुत आवाज देने पर भी जब कालीदास न आए तो वह स्वयं पहुँची । चिन्तातुर देखकर पूछताछ करके जान लिया कि पिताजी प्रश्न का उत्तर ढूढ़ने की चिन्ता में हैं । लड़की ने आश्वासन दिया कि मैं बता दूंगी। उस दिन शाम को उसने जो भोजन बनाया, उसमें कुछ उत्तेजक पदार्थ डाल दिये । नशा चढ़ा । कामोन्माद जागा । पुत्री को बुलाया, एकान्त और पिता-पुत्री के सिवाय कोई नहीं । पुत्री ने पहले से ही एक अलग कमरा ठीक कर लिया था, ताकि पिता कहीं कुछ करें तो तुरन्त भागकर वह दरवाजा बन्द कर सके । बस, कामोन्मादवश एकान्त देखकर कालीदास ने पुत्री का हाथ पकड़ा। तुरंत ही हाथ छुड़ाकर वह अपने नियत कमरे में चली गई और अन्दर से कुण्डी लगा ली । कालीदास खोलने के लिए बहुत चिल्लाए पर उसने न खोला। सुबह जब नशा उतरा, होश में आए तो अपने दुष्कृत्य एवं दुर्विचार पर बहुत पश्चात्ताप हुआ । पुत्री से क्षमायाचना करके आत्महत्या करने का उतारु हुए लेकिन बुद्धिमती पुत्री ने उन्हें समझा-बुझाकर रोका तथा
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