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१७८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
काटे । फिर चोरों से आधा हिस्सा पाने का वादा लेकर उसने अपने दोनों पैर उस सेंध में डाले । इधर मकान में सेठ, उसके तीन पुत्र और दो नौकर जाग गये। उन्होंने मजबूत रस्ते का फंदा कसकर पकड़ रखा था। ज्योंही उसने पैर अन्दर डाले, उन लोगों ने उसके दोनों पैरों को रस्सी के फंदे से जकड़ लिया और खींचने लगे। उधर प्रियंवद के साथी चोर उसे बाहर खींचने लगे । दोनों ओर की रस्सा-कस्सी में वह लहूलुहान हो गया । सबेरा होते ही हम सब पकड़े जाएँगे यह सोच चोरों ने प्रियंवद की गर्दन काट ली और लेकर भागे। रास्ते में शंका से सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया। राजा के समक्ष पेश किया । चोरों की विडम्बना करके राजा ने शूली पर चढ़ा दिया । यों भयंकर यातना पाते हुए वे चारों मरकर नरक में पहुँचे ।।
चोरी से शरीरनाश से कितनी हानियां होती हैं, यह मैं पहले बता चुका हूँ। इसीलिए महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में बताया है
"चोरी पसत्तस्स सरीरनासो" चोरी में आसक्त होने वाले का शरीर नष्ट हो जाता है।
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