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________________ ६१. परस्त्री-आसक्ति से सर्व-नाश प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ ! सप्तकुव्यसन के सन्दर्भ में आज मैं आपके समक्ष परस्त्रीगमन से जीवन के सर्वनाश के सम्बन्ध में प्रकाश डालूगा । महर्षि गौतम ने, नैतिक जीवन का अतिक्रमण करने से सर्वनाश का मार्ग खुल जाता है, इस बात की गंभीर चेतावनी दी है। गौतमकुलक का यह ७७ वाँ जीवनसूत्र है, जिसे इन शब्दों में यहाँ व्यक्त किया गया है "तहा परत्थीसु पसत्तयस्स, सम्वस्स नासो अहमागई य ॥" तथा जो व्यक्ति परस्त्रियों में आसक्त हो जाता है, उसका सर्वस्व नष्ट हो जाता है, साथ ही नीचगति भी प्राप्त होती है। परस्त्री में आसक्त होने के कारण सर्वप्रथम प्रश्न यह होता है कि परस्त्री में मनुष्य क्यों आसक्त होता है ? क्या कारण है कि अपनी सुन्दर, सुरूप, पतिभक्ता, सुशील, गृहिणी को छोड़कर या नैतिक-सामाजिक मूल्यों को तिलांजलि देकर मनुष्य किसी भी जाति-कुल की, संस्कारकुसंस्कार को देखे बिना परस्त्री में फँस जाता है। परस्त्री के प्रति आकर्षण होने के क्या-क्या कारण हैं ? परस्त्रीसेवन महापाप है, वह त्याज्य है, निषिद्ध है, अनार्य कर्म है, अपराध है; इतना कहने मात्र से आज कोई भी व्यभिचारी मानव या जिसे परस्त्रीसेवन का चस्का लग चुका है, नहीं मानता। इसलिए परस्त्रीसेवन के कारणों को ढूढ़कर, उनका जड़मूल से निवारण करने का प्रयत्न करना चाहिए। समाजशास्त्रियों की दृष्टि में परस्त्री में आसक्ति होने के मुख्य-मुख्य कारण (१) परस्त्रीगामियों का कुसंसर्ग (२) क्षणिक कामावेश, (३) अज्ञानता, (४) स्व-स्त्री में अत्यासक्ति, (५) स्व-स्त्री के व्यभिचारिणी होने पर, (६) आर्थिक विवशता, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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