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चोरी में आसक्ति से शरीरनाश : १७५
बहुत-सो बार शासन को दुर्बलता के कारण भी चोर, डकैत बढ़ जाते हैं। सात्त्विक एवं पवित्र धन्धा वे नहीं करना चाहते, रिश्वत देकर या किसी तरह से अधिकारियों की जेब गर्म करके चोर लोग सरकार की आँखों में धूल झौंककर एक या दूसरे प्रकार से चोरी करते-कराते रहते हैं।
चोरी का मुख्य दुष्परिणाम : शरीरनाश महर्षि गौतम ने चोरी के मुख्य दुष्परिणाम का उल्लेख किया है, कि चोरी से मनुष्य के शरीर का नाश हो जाता है। शरीर के नाश के पीछे क्या रहस्य है ? यह मैं आपको संक्षेप में बता देता हूँ-चोरी करने के फलस्वरूप या तो उसे मारा-पीटा जाता है, या अंगभंग कर दिया जाता है अथवा मृत्युदण्ड मिलता है तो शरीर का नाश या शरीर की हानि हो जाती है ।
आप सोचते होंगे, मनुष्य-शरीर का नाश हो गया तो क्या हो गया ? फिर मिल जाएगा। परन्तु भगवान् महावीर एवं भारत के ऋषि, मुनि, त्यागी, संत एक स्वर से पुकार-पुकारकर कहते हैं, मनुष्य, शरीर या मनुष्य-जन्म मिलना अत्यन्त दुर्लभ है । अनन्त जन्मों की पुण्यराशि के बाद मानव-शरीर मिलता है, फिर किसी पापकर्म या अधर्म कृत्य के फलस्वरूप इस शरीर का नाश हो जाने पर पुनः मनुष्यजन्म मिलने की कोई गारंटी नहीं है। एक बार मनुष्य-शरीर का पापकर्मवश नाश होने पर नरक या तिर्यंच गति मिलती है, पता नहीं करोड़ों वर्षों तक पुनः मानव शरीर मिले या न मिले।
मनुष्य-शरीर के सिवाय कोई भी शरीर ऐसा नहीं है, जिससे व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान किये जा सके, धर्माचरण किया जा सके, यहाँ तक कि श्रावकत्व एवं साधुत्व का पालन करके मुक्ति की आराधना-साधना की जा सके, और सर्व कर्मों के बन्धन से मुक्त होकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हुआ जा सके। इसलिए जिस मनुष्य-शरीर के द्वारा इतनी बड़ी उपलब्धि हो सकती थी, उसका नाश हो जाने पर कितना बड़ा नुकसान हुआ ? आप अनुमान लगाइए, जिस आत्मा पर सघन कर्मावरण थे, वह बहुत कुछ दूर हुए व मनुष्य-जन्म पाने तक का विकास हुआ। वह सारा कियाकराया, काता-पींजा मनुष्य-शरीर का नाश होते ही नष्ट हो जाता है। फिर नये सिरे से आत्मा का विकास करने के लिए न मालूम कितने जन्मों के बाद अवसर मिले या न भी मिले । क्या नरक, तिर्यंच में आत्म-विकास का अवसर मिल सकेगा? कदापि नहीं, और न स्वर्ग में ही आत्मविकास का सुअवसर या वातावरण मिल सकता है। ऐसी स्थिति में मनुष्य-शरीर का विनाश एक दृष्टि से आत्मविकास का बहुत बड़ा ह्रास है। जिस मनुष्य-शरीर से पुण्य-वृद्धि के अनेक उपाय हो सकते थे, उस मनुष्य-शरीर के नाश से वे कदापि नहीं हो सकते, अन्य-शरीरों में। जिस मनुष्य-शरीर से पर कल्याण कर सकता था, उस मनुष्य-शरीर के अकाल में नष्ट होने से कल्याण तो दूर रहा, अपनी अधिकाधिक हानि और अपने परिवार, समाज एवं राष्ट्र की अधिकाधिक बदनामी, कुसंस्कारिता आदि ही फैलाकर मनुष्य जाता है ।
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