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________________ चोरी में आसक्ति से शरीरनाश : १७३ अर्थात् निर्धनों को धन न दिये जाने से दरिद्रता बहुत बढ़ गई और दरिद्रता के बहुत बढ़ जाने से चोरी बहुत बढ़ गई है। अगर सम्पन्न लोग अपना कर्त्तव्य समझकर निर्धनों को गले से लगा लें और उन्हें यथोचित सहयोग दें तो उन्हें चोरी करने का अवकाश ही न रहे । परन्तु धनवान लोग अपने धन के मद में रहते हैं, उन्हें क्या मतलब, समाज में कोई अनाथ, गरीब, असहाय, दरिद्र या अभावग्रस्त है। कौन किस प्रकार से जिन्दगी व्यतीत कर रहा है ? इसकी चिन्ता उन्हें नहीं होती ! वे प्रायः अपने ही ऐश-आराम में, सुखोपभोग में मस्त रहते हैं। परन्तु याद रखिए, आपकी सम्पन्नता इन्हीं गरीबों की बदौलत है। अगर आप लोग गरीबों को पुकार सुनेंगे तो गरीब लोग भी आपके सहायक होंगे, आपके धन की सुरक्षा में सहायक होंगे अन्यथा आपका पुण्य समाप्त हो जाने पर संचित धन भी किसी न किसी रूप में चला जाएगा। निर्धन, भूखे और विवश लोग धनिकों से सहायता न मिलने पर अगर चोरी कर बैठें कोई अस्वाभाविक नहीं । चोरी के बाह्य कारणों में दूसरा कारण है-बकारी और बेरोजगारी। देश में आज बहुत बेकारो फैली हुई है। कुछ तो भारत के लोग आलसी हैं। वे दो दिन का भोजन होगा तो आलस्य में पड़े रहेंगे, श्रम नहीं करेंगे। दूसरी बात यह देखी गई है कि भारतीय लोग श्रम के कार्य से जी चुराते हैं, वे चाहते हैं ऐसा कार्य, जिसमें केवल कुर्सी पर बैठे रहकर कलम चलानी पड़े। हाथ-पैर न हिलाने पड़े। इसीलिए थोड़े से पढ़लिखकर वे गाँव छोड़-छोड़कर शहरों में भाग रहे हैं। इस प्रकार शहरों के कलकारखानों में श्रम बहुत थोड़ा करते हैं, आए दिन हड़ताल, बंद, घेराव आदि के कारण उत्पादन ठप्प कर देते हैं । भला काम से इस प्रकार जी चुराकर भागने से बेकारो नहीं आएगी तो क्या होगा? वे बैठे-बैठे हुक्का गुड़गुड़ाते हैं, बीड़ियाँ फूंकते हैं या गप्पें लड़ाते हैं। इतने कार्य पड़े हैं कि कोई करना नहीं चाहता । कुछ तो बेकारी स्वाभाविक होती है, कुछ ये काम से जी चुराने वाले लोग बढ़ा देते हैं। बेरोजगारी की बात भी हमारे देश में स्वाभाविक नहीं हैं, मध्यमवर्गीय परिवार में एक कमाने वाला और दस खाने वाले होते हैं , स्त्रियाँ आजीविका के कार्य नहीं करतीं, न श्रम के कार्य में हाथ बँटाती हैं । पढ़ने वाले लड़के-लड़कियाँ भी प्रायः माता-पिता पर बोझ बने रहते हैं । छोटे बच्चों और अत्यन्त बूढ़ों को छोड़ दें तो भी घर में बहुत-से सदस्य सशक्त होते हुए बेकार बैठे रहते हैं। सबको रोजगार-धन्धा कहाँ से मिलता-बेकारी, भुखमरी और बेरोजगारी के कारण। कई लोग चोरी का अनैतिक धंधा अपना लेते हैं। आजकल तो सुनने में भी आ रहा है-पढ़े-लिखे शिक्षित लोग बेकारी के कारण चोरी के धंधे पर उतर आते हैं, वे श्रम से जो चुराकर ही इस प्रकार से चोरी का धंधा अपनाते हैं। जो लोग अपनी मेहनत मजदूरी में विश्वास रखते हैं, वे कदापि चोरी जैसी अनैतिक जीविका नहीं अपनाते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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