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________________ १७० : आनन्द प्रवचन : भाग १२ बदनामी ही बदनामी चारों ओर से सुनने को मिलती है, ऐसी चोरी यहाँ कुव्यसन मानी गई है और उसका त्याग नैतिक जीवन के लिए अनिवार्य बताया गया है। आवश्यकसूत्र' में मोटे तौर पर उस चोरी के पांच अंग बताये गये हैं, जिनसे उस चोरी की पहचान हो सकती है (१) खात खन कर, यानी दीवार फोड़कर या सेंध लगाकर (२) गांठ खोलकर (३) सन्दूक, तिजोरी या पेटी का ताला तोड़कर या ताला खोलकर (४) वस्तु के मालिक के जानते-अजानते, या उसकी गफलत (असावधानी) में गिरी हुई, पड़ी हुई या रखी हुई चीज को अपने अधिकार में करने की नीयत से उठाना। (५) मालिक की उपस्थिति में डाका डालकर, छीनकर, लूटकर या जेब काटकर विविध उपायों से पराई वस्तु ले लेना । आजकल चालाक लोगों ने चोरी के नये-नये ढंग अपना लिये हैं। कई लोग जेब काटने का धंधा करते हैं, उन्हें न तो किसी के मकान में सेंध लगाना है, न गांठ खोलना है, न डाका डालना है और न लूटना है, न गिरी हुई या पड़ी हुई चीज को उठाना है । वे ऐसी सिफ्त से जेब काटते हैं कि किसी को पता भी नहीं चलता और जो भी नोट वगैरह होते हैं, उन्हें लेकर चंपत हो जाते हैं। एक धनिक स्टेशन पर अभी ट्रेन से उतरा ही था कि उसके पीछे एक व्यक्ति लग गया। उसने उसकी पीठ पर ऐसी दवा डाल दी, जिससे खुजली चलने लगी । वह जब खुजलाने लगा, तब उस चोर ने उसके पास आकर कहा- सेठजी ! यह रहा नल। आप कपड़े यहाँ उतार दीजिए और नल पर शरीर को रगड़कर नहा लीजिए । उसने कोट, पैन्ट आदि खोला और एक ओर रखकर नहाने लगा । जिस समय वह साबुन लगाकर आँखें बन्द करके नहा रहा था। उसी समय उसने कोट, पैन्ट आदि की जेब में जो भी नकद या घड़ी, अंगूठी आदि थे, सब साफ कर लिए और वापस उन कपड़ों को ज्यों के त्यों रखकर नौ दो ग्यारह हो गया। नहाकर जब वह व्यक्ति कपड़े पहनने लगा और कोट आदि की जेबों में हाथ डाला तो सब चीजें नदारद ! ___ इसी प्रकार कई लोग बड़े शहरों में किसी के यहाँ नौकर के रूप में गृह-कार्य करने के लिए नियुक्त होते हैं, कुछ दिनों बाद जब विश्वास जम जाता है, तब एक दिन मौका देखकर अपने किसी सम्बन्धी को बुलाकर चोरी करा देते हैं। ___ दिल्ली की लगभग तीन दर्जन चोरियां करने वाली कुख्यात चोर और जेबकट सुन्दरी शीला की सन् १९७४ में अखबार में एक घटना प्रकाशित हुई थी। दक्षिण दिल्ली जिला के पुलिस अधीक्षक ने बताया कि शीला ऊँचे घरानों में पहले स्वयं १. अदिन्नादाणे पंचविहे पणत्ते, तंजहा–खत्त खणणं, गंठिभेयणं, जतुग्घाडणं, पडि यवत्युहरणं, ससामियवत्थूहरणं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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