SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सभी धर्मों में निषिद्ध ११३, मद्यपान से यश का विनाश : क्यों और कैसे ? ११४, पतित और पापी बनकर जीना ११५, शरीर आदि की दृष्टि से अयोग्य और रुग्ण बनकर जीना ११६, धर्मशास्त्रों द्वारा निषिद्ध निन्द्य वस्तु का सेवन ११७, मद्यपान के सोलह दोष ११७, जान-बूझकर आध्यात्मिक पतन ११७, पारिवारिक जीवन में मद्य से यशोनाश ११८, सामाजिक जीवन में यश का नाश ११६, आध्यात्मिक जीवन में भी यशोनाश १२०, राजकीय जीवन में यशोनाश १२०, मुगलों की शराबपरस्ती-मुहम्मदशाह का दृष्टान्त १२१ । ८८. वेश्या-संग से कुल का नाश १२२-१३६ वेश्या : क्या है, क्या नहीं ? १२२, वेश्या द्वारा ही वेश्यावृत्ति की निन्दा १२३, वेश्यावृत्ति का स्पष्ट चित्रण १२४, वेश्याओं के संसर्ग से बुरा हाल १२५, वेश्यागामी पुरुषों की दशा १२५, वेश्या का स्वरूप १२६, कृतपुण्य का दृष्टान्त १२६, वेश्यावर्ग : आवश्यक या अनावश्यक १२७, वेश्या-आसक्ति से कुलों का सर्वनाश १२६, फ्रांस की राजकान्ति का कारण : वेश्याएँ १२६, स्पार्टा का सरकारी फरमान १३०, प्रबल वेश्यासक्ति से कुल विनाश के कगार पर १३१, जिनदत्त श्रेष्ठी के पुत्र का दृष्टान्त १३१, वेश्या समागम के भयंकर परिणाम १३३, वेश्यासक्ति : सर्वनाश का कारण १३३, वेश्याओं का परिपाश्विक वायुमण्डल १३४, उज्झितकुमार का दृष्टान्त १३५ । ८६. हिंसा में आसक्ति से धर्मनाश १३७-१५९ हिंसा से यहाँ क्या तात्पर्य है ? १३७, नादिरशाह का दृष्टान्त १३६, हिंसा विविध रूपों में १४०, शिकार के रूप में हिंसा कितनी भयंकर १४१, हिंसा को भयंकर पाप कहने के कारण १४१, क्षत्रियों का धर्म : दुर्बलों का प्राणघात नहीं १४४, महाकवि धनपाल और राजा भोज का दृष्टान्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy