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१४४, शिकारी जीवन में सुख कहाँ ? १४५, शिकार भी एक प्रकार का नहीं १४५, हिंसा : मुर्गों, साँड़ों, मानवों आदि को लड़ाकर हत्या कराने में १४६, हिंसा : विविध शृगारिक उपकरणों आदि के रूप में १४७, दवाओं, प्रयोगों, परीक्षणों आदि के नाम पर घोर हिंसा १४८, हिंसा : हत्या या कत्ल कराने के रूप में १५१, मारण आदि मंत्र-प्रयोग भी हिंसा १५२, इतिहास-प्रसिद्ध हिंसक व्यक्तियों के दृष्टान्त १५२, हिंसा : पशु-पक्षी एवं मनुष्य की बलि के रूप में १५४, धर्म के नाम पर होने वाली भयंकर हिंसाएँ १५६, 'पीपल्स टेम्पल' संस्था का दृष्टान्त १५७, हिंसा : लूट, डाका, आगजनी के रूप में १५८, हिंसा : युद्ध द्वारा नर-संहार के रूप में १५८, आधुनिक युद्ध कितने महंगे ? १५६, संसार का शस्त्रास्त्र
बजट १५६ । ९० चोरी में आसक्ति से शरीरनाश
चोरी क्या है, क्या नहीं है ? १६०, चोरी क्यों पाप है, क्यों कुव्यसन है ? १६१, हेमू युवक का दृष्टान्त १६२, चोर का कोई धर्म नहीं होता १६५, प्रश्नव्याकरण सूत्र में वर्णित चोरी के तीस नाम १६६, चोरी का कुव्यसन कैसे जन्मता, कैसे बढ़ता ? १६६, माधो चोर का दृष्टान्त १६७, प्रस्तुत में किस प्रकार की चोरी त्याज्य ? १६६, आवश्यक सूत्र में वर्णित चोरी के पाँच अंग १७०, चोरी के अन्तरंग एवं बाह्य कारण १७१, प्रथम कारण-दरिद्रता एवं अभाव १७२, दूसरा कारण-बेकारी और बेरोजगारी १७३, तीसरा कारण --फिजूलखर्ची १७४, चौथा कारण -आवश्यकताओं में वृद्धि १७४, पांचवां कारण-यश-कीर्ति या प्रतिष्ठा की भूख १७४, चोरी का मुख्य दुष्परिणाम : शरीरनाश, १७५, हुण्डिक चोर का
दृष्टान्त १७७, तक्षशिला के प्रियंवद बढ़ई का दृष्टान्त १७७ । ६१. परस्त्री आसक्ति से सर्वनाश
परस्त्री में आसक्त होने के कारण १७६, (१) परस्त्रीगामियों का कुसंसर्ग १८०, (२) क्षणिक कामावेग १८०, (३)
१७६-१६६
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