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________________ ८६. मांस की आसक्ति से धन का नाश ८७. ( १५ ) आहार : सुख-शांति और प्राणरक्षा के लिए आवश्यक ८२, कौन सा आहार उपयुक्त, कौन-सा अनुपयुक्त ८३, शाकाहार ही क्यों, मांसाहार क्यों नहीं ? ८४, मांसाहार : मनुष्य की आत्मिक प्रवृत्ति के विपरीत ८४, मांसाहार : मनुष्य के धर्म एवं स्वभाव के विरुद्ध ८७, रिचे का दृष्टान्त ८७, मांसाहार : शारीरिक रचना एवं प्रकृति के प्रतिकूल ८, मांसाहार : मानवीय विशेषता की दृष्टि से त्याज्य ६०, मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी क्या मांसाहार के कारण है ? ६०, मांसाहार : हत्या से भी बढ़कर क्रूर कर्म ६१, सीधा मांस खरीदकर खाना भी अपराध है ६२, मांस मनुष्यता से गिराने वाला तमोगुणी भोजन ६३, मांसाहार से शक्ति : भयंकर भ्रम ४, अनेक दृष्टान्त १५, पशुमांसभोजी एक दिन मानवमांसभोजी भी हो सकते हैं ε७, मांसाहार : कोमल भावनाओं का नाशक ९७, मांसाहार : अपवित्र एवं मनुष्य के लिए अयोग्य ८, मांसाहार में न स्वास्थ्य है, न स्वाद ६६, मांसाहार की प्रवृत्ति : आतंकवाद का आधार १०० । मद्य में आसक्ति से यश का नाश मद्य क्या है, क्या नहीं ? १०२, मद्य : बुद्धिनाशक क्यों ? १०३, मद्य से स्मरण शक्ति का ह्रास १०३, मद्यपान : दिमागी गड़बड़ियों का कारण १०४, मद्य : नेत्र संवेदननाशक १०७, मद्य : श्रवणसंवेदन- नाशक १०७, मद्यपान की चार दशाएँ १०८, मद्य का परिचय १०८, मद्य : कई रोगों का जनक ११०, मद्य : सभी व्यसनों का मूल ११०, मद्य : धर्म, ईमान का आदि का ध्यान भुलाने वाला १११, मद्य : पाचन शक्ति नहीं बढ़ाता १११, मद्य शक्तिवर्द्धक एवं स्फूर्तिदायक नहीं १११, मद्य : न पोषक, न अनिवार्य खान-पान १११, मद्य : गर्मी नहीं लाता ११२, मद्य : एक घातक विष ११२, मद्य : भयंकर शत्रु, शैतान का शस्त्र ११२, मद्य : Jain Education International For Personal & Private Use Only ८२ – १०१ १०२ - १२१ www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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