SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हिंसा में आसक्ति से धर्मनाश : १५९ का तानाबाना बुनता है। समयानुसार दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी दुरभिसंधियों का निशाना बनाते हैं । इस शृंखला का अन्त तब होता है, जब दोनों ही पक्ष अपनी क्षमता नष्ट कर चुकते हैं। दोनों ही क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। अत; मंहगे युद्ध की निरर्थता स्पष्ट है। जूलियस सीजर के समय लड़ाई में एक सैनिक को मारने पर ७५ सेंट खर्च पड़ता था, नेपोलियन के युग में वह २१ डालर हो गया, दूसरे विश्व युद्ध में उसकी दर बढ़ी, एक संनिक को मारने में ५० हजार डालर खर्च करने पड़े। वियतनाम युद्ध में अमेरिका को इससे ७ गुना अधिक खर्च करना पड़ा। अर्थात् एक संनिक को मारने पर ३४४८२७ डालर खर्च करने पड़े । इतने धन से जापान जैसे छोटे-से देश को समृद्ध बनाया जा सकता था। फिलहाल संसार ७०० करोड़ रुपये प्रतिवर्ष शस्त्रास्त्रों पर खर्च करता है। ८६॥ करोड़ में एक ब्रिटिश विमान वाहक जंगी जहाज तयार होता है, जबकि ५३ करोड़ रुपयों से विश्व के नागरिकों को शुद्ध जल की व्यवस्था की जा सकती थी, ६०० देहाती अस्पताल खोले जा सकते थे। इतना विशाल खर्च युद्धबन्दी से बच सकता है, संसार स्वर्ग बनाया जा सकता है। परन्तु हिंसा के पक्षधरों में यह सद्बुद्धि पदा हो, तब न ? अन्यथा युद्धजन्य हिंसा से भयंकर पाप का उपार्जन तो होता ही है, धर्म का सर्वनाश हो जाता है । इसीलिये महर्षि गौतम ने सभी प्रकार की हिंसाएँ को सद्धर्म का विनाश करने वाली बताई हैं हिंसा पसत्तस्स सुधम्मनासो।' -हिंसा का आचरण करने से धर्म का नाश हो जाता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy