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१५२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
का यह कहकर कत्ल कर दिया गया कि परलोक में वे अपने स्वामी की सेवा करेंगे। कितनी भयंकर क्रूर प्रथा थी । अन्ध-विश्वासवस घोर हिंसा का यह नमूना है।
कई बार परस्पर विद्वेष या अदावत के कारण मनुष्यों में परस्पर हत्याकाण्ड चलता है, कई व्यक्ति अपने जरा से स्वार्थ को लेकर दूसरों की हत्या करा देते हैं। आजकल राजनैतिक स्वार्थ को लेकर बात-बात में अपने विरोधी की हत्या कराने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती। पुराने जमाने में राज्यलिप्सावश राजघरानों में एक-दूसरे की हत्या के षड्यंत्र रचे जाते थे, अपने विरोधी का बिलकुल सफाया कर दिया जाता था। राजाओं के रनिवास में भी रानियों में परस्पर ईर्ष्या-द्वेष आदि चलता था, जिसके कारण एक मानीता रानो अपनी सौतों को मरवा देती थी।
इसी प्रकार अपने शत्रु या प्रतिपक्षी का विनाश करने के लिए मारण, मोहन, उच्चाटन आदि मंत्रों का प्रयोग किया जाता था। कई बार तो धार्मिक विद्वेष, राजनैतिक विद्वष जातीय विद्वेष के कारण किसी अच्छे और लोकप्रिय व्यक्ति की भी हत्या कर जाती है, जैसे राष्ट्रपिता, सर्वहितैषी महात्मा गाँधी को गोडसे ने गोली का शिकार बनाया, इसी प्रकार राजनैतिक विद्वेष के कारण अमेरिका के राष्ट्रपति कैनेडो की हत्या की गई, जातीय या रंग-विद्वेष के कारण नीग्रो-नेता मार्टिन लूथर किंग की हत्या की गई। ऐसे ही भारत में जरा से तुच्छ स्वार्थ को लेकर अनेक महापुरुषों की, राजनैतिक पुरुषों की हत्या की खबरें आए दिन हम समाचार पत्रों में पढ़ते हैं। राजनैतिक स्वार्थवश किये गये भयंकर नर-हत्याकाण्डों के नमूने देखिये
नादिरशाह ईरान का एक गड़रिया था भेड़ चराते-चराते डाकेजनी करते हुए अन्य डाकुओं को अपने नियंत्रण में कर के वह डाकुओं का सरदार बन बैठा। धीरेधीरे-धीरे वह ईरान की गद्दी पर पहुँचा । शासन सत्ता को हाथ में लेने के बाद यदि वह चाहता तो जनहित में अपनी प्रतिभा का उपयोग करके लाखों व्यक्तियों का वन्दनीय बन सकता था । परन्तु उसके हृदय और मस्तिष्क में क्रूरता और नृशंसता के तत्त्व विद्यमान थे। ईरान का शासक बनकर उसे नरहत्या में रस आने लगा। उसने कई देशों में कत्लेआम करवाये । भारत आकर उसने दिल्ली लूटी, और प्रायः उजाड़ दी। एक ही दिन में डेढ़ लाख आदमी कत्ल करवाये। जितने भी भवन-निर्माण कलाविशेषज्ञ मिले, सबको वह कैद करके ईरान ले गया।
___ जर्मनी का हिटलर नृशंसता में आने वर्ग के सभी साथियों से बाजी मार गया। उसका मिथ्या भ्रम था कि प्रथम महायुद्ध में जर्मनी यहूदियों के कारण ही हारा, अतः उसने उसका बदला अगली पीढ़ी से जाति-वध के रूप में लिया। उसने एक साथ ५०-६० लाख यहूदियों को विषली गैस से दम घोंटकर मार डाला।
२१ अक्टूबर १९४१ का दिन यूगोस्लाविया की जनता के लिये सबसे बड़ा नृशंस दिन है। उस दिन ७ हजार निरपराध नागरिकों और स्कूलों में पढ़ रहे बालकों
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