________________
हिंसा में आसक्ति से धर्मनाश : १५१
का एक लेख पढ़ा था । उसमें उन्होंने बताया है कि वेक्सीन और सीरम, जो लाखों प्राणियों को कष्ट देकर, मारकर उनके अंगोपांगों से बनाई जाती है, उसके बदले में आईजेन नगर की वेटरनरी रिसर्च संस्था ने दसरी पद्धति से प्राणियों का प्रयोग किये बिना सीरम और वेक्सीन की पीव तैयार की है, जो प्राणिजन्य वेक्सीन से अधिक शक्तिशाली एवं गुणदायक सिद्ध हुई है। इसके प्रयोग से प्रति वर्ष ३६००० बकरे आदि पशुओं की हत्या रुक जायगी।
कुछ भी हो, पशु-हत्या से मानवीय प्राकृति में क्रोध, आवेश, कामुकता, ईर्ष्या, प्रतिशोध जैसे अमानुषिक उच्छृखल तत्त्व बढ़ते हैं। काटे गये पशुओं का चीत्कार मनुष्य जाति पर नाना प्रकार की विपत्तियाँ बनकर बरसता है।
हिंसा : हत्या या कत्ल करने कराने के रूप में - विश्व में आज हजारों से अधिक कत्लखाने चल रहे हैं, इन कत्लखानों में अरबों जानवर काटे जाते हैं। यह भयंकर पापकर्म तेजी से बढ़ता जा रहा है। इस पाप के लिये कौन जिम्मेदार है,- कसाई, सरकार या उपभोक्ता ?
... गहराई से सोचा जाए तो इस प्राणिहिंसा के लिए अधिकतर जिम्मेदार वे लोग हैं, जो प्राणिहिंसाजन्य वस्तुओं का उपयोग करते हैं। मांस खाने वालों के लिए बड़े-बड़े कत्लखाने चलते हैं, कसाइयों की दूकानें चलती हैं। वैसे इसके लिए सरकार और कसाई भी जिम्मेदार हैं ही। साधु टी. एल. बास्वानी के कथनानुसार डिब्बे में बन्द मांस बेचने वाली इंग्लैंड की एक कम्पनी प्रतिदिन १० हजार गाय, २० हजार भेड़े, २७ हजार सूअर कत्ल करती है। यह संख्या इतनी बड़ी है कि दो दो की लाइन में उन पशुओं को खड़ा किया जाए तो १५ मील लम्बी कतार बन जाएगी।
'चेकोस्लोवाक लाइफ' पत्रिका के अनुसार यूरोप में शिकारी संघों में १ लाख २० हजार ऐसे हैं, जो लाइसेंस प्राप्त करके प्राणिवध करते हैं। उसके वार्षिक विवरण के अनुसार इनके द्वारा मारे गए पशु-पक्षियों की संख्या पशु-पक्षी कुल मिलाकर ११ लाख ८८ हजार १६ होती है, बिना लाइसस की संख्या तो इससे तिगुनी होगी।
- इसके अतिरिक्त क्रोध, आवेश, मनोरंजन, खुशी, उत्सव आदि के उपलक्ष में हजारों पशुओं की हत्या कर या करा दी जाती है, वह अलग है।
न जाने सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी-मानव अपने तुच्छ प्रयोजन के लिए कितने रूप में हत्या कर देता है।
जैसे-बहुत सी हिंसाएं क्रूर कुप्रथाओं के कारण होती हैं। हमारे देश में मृतपति के साथ उसकी जीवित पत्नी को जबरन जलकर सतो होना पड़ता था, वैसे ही मिस्र म राजाओं के शव के साथ उसकी कई रानियों को गला घोंटकर मार डाला जाता और राजा के साथ हो दफनाया जाता। ५० घोड़े और ५० सेवक तथा दासदासियों को भी वहीं गाड़ा जाता था, ताकि वे परलोक में राजा को मिल सकें। मंगूखाँ नामक सरदार की शव यात्रा के समय सामने पड़ने वाले २० हजार व्यक्तियों
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org