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हिंसा में आसक्ति से धर्मनाश | १४३
द्वारिकानगरी के विनष्ट होने की बात सुनकर श्रीकृष्ण बलदेवजी के साथ उसी वन में पहुँच गए द्वारिका छोड़कर । वन में श्रीकृष्ण को प्यास लगी तो बलदेवजी उन्हें एक जगह बिठाकर स्वयं पानी की तलाश में गये । श्रीकृष्ण पीताम्बर ओढ़कर बैठे थे । जराकुमार ने उन्हें हिरण समझकर तीर छोड़ा, वह सीधा श्रीकृष्ण के पैर में और वहीं उनकी इहलीला समाप्त हो गई । जराकुमार को जब ज्ञात हुआ तो उसके मन में अत्यन्त पश्चात्ताप हुआ, पर अब क्या होता ? बलदेवजी के डर से छिपाछिपा भागता रहा । शिकार के दुर्व्यसन ने कितना भयंकर अनर्थ करा डाला उसके हाथ से ?
लगा,
वैदिक रामायण के अनुसार राजा दशरथ को भी शिकार का शौक था । परन्तु उसका परिणाम कितना भयंकर आया ? उन्हों के तीर से ऋषिपुत्र मातृ-पितृभक्त श्रवण कुमार मारा गया । श्रवणकुमार के अंधे माता-पिता ने जब अपने पुत्र की मृत्यु का हाल सुना तो उनके हृदय की आहें दशरथ को लग गयीं । फलस्वरूप दशरथ की मृत्यु भी बड़े पुत्र के वियोग में हुई ।
गांगेयकुमार, जो आगे चलकर भारतीय इतिहास में भीष्मपितामह के नाम से प्रसिद्ध हुए, उनके पिता शान्तनु राजा भी अत्यन्त मृगयारसिक थे । उनकी पवित्र महारानी गंगादेवी ने उन्हें कई बार शपथ दिलाई, निर्दोष पशुओं का वध न करने के लिए समझाया, परन्तु उन्हें मृगया का व्यसन इस तरह का लगा कि उन्हें इस व्यसन की धुन में अपनी परमप्रिय धर्मपत्नी - गंगा महारानी को छोड़ना पड़ा । पुत्र और पत्नी का दुःखद वियोग सहना पड़ा । फिर भी वे नहीं चेते ।
इसलिए शिकार घोर पश्चात्ताप और दुःख का कारण इस लोक में तो प्रत्यक्ष है ही, परलोक में भी शिकारी पंचेन्द्रिय पशुओं का निर्दोष वध करने के कारण घोर नरक का अतिथि बनता है, जहाँ घोर दुःख और यातना के सिवाय और कुछ नहीं है । श्रीमद्भागवत (८।२२।४६ ) में भी शिकार का घोर कटुफल बताते हुए कहा है
मृगयारसिका नित्यं अरण्ये पशुघातकाः ।
परेतांस्तान् यमभटा लक्ष्यीभूतान् नराधमान् ॥
- मृगयारसिक लोग प्रतिदिन जंगल में अनेक पशुओं का वध करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें परलोक (नरक) में यमराज के सुभट अपना निशाना बनाकर मारते हैं ।
तिलोक काव्य संग्रह में शिकार का दुष्परिणाम बताते हुए कहा हैप्राण की पूंजी ले कानन में रहे तृण को खावे रति न सतावे । सो जो जीव गरीब अनाथ को ले हथियार सो मारण धावे ॥ हँसी-हँसी करे पातक पापिया कर्म उदय सब ही घबरावे । जीभ जलावत जम जोरावर कहत तिलोक पडयो बिललावे ||
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