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१४२ | आनन्द प्रवचन : भाग १२ आ पड़ती है, वह भय से थर्रा उठता है, प्राणों की चिन्ता तीव्र रूप से करने लगता है, यह आर्तध्यान का लक्षण है। आर्तध्यान करने से भयंकर पापकर्म का बन्ध होता है । फिर प्राणिहिंसारूप रौद्रध्यान भी करता है। पहले तो हिंस्र पशुओं को मारने की योजना बनाता है, फिर मारने पर खुशियाँ मनाता है। रौद्रध्यानवश प्राणियों के प्रति आत्मीयता, मैत्री, परोपकारवृत्ति, मानवता आदि पवित्र भाव शिकारी के हृदय से विदा ले लेते हैं ।
निर्दोष पशुओं का शिकार करने वाला हिंसा और चोरी, दोनों पापों को एक साथ करता है । फिर शिकार के व्यसनी लोगों में अपनी झूठी शेखी बघारने और असत्य बोलने की आदत हो जाती है। जिन पशुओं को वह मारता है, उनका मांस भी खाता है, शराब भी पीता है । मांस खाने और शराब पीने से उत्पन्न कामोत्तजनावश उसके द्वारा परस्त्रीगमन या वेश्यागमन भी हो जाना संभव है। इस प्रकार शिकार के साथ अनेक दुर्व्यसनों और पापों का आगमन हो जाता है । इन कारणों से शिकार को भयंकर पाप कहा है । इसमें धर्म की प्राप्ति का तो कोई भी कारण नहीं है । इसके चारों ओर पाप ही पाप लगे हुए हैं।
__शिकारी कई बार अपने इस दुर्व्यसन के कारण पशु-पक्षियों का शिकार करने के बहाने मनुष्यों तक का भी शिकार कर लेता है। मनुष्यों में से अपने ही बन्धु-बांधव उसके शिकार के निशाने बन जाते हैं, तब तो उसके पश्चात्ताप का ठिकाना नहीं रहता।
जापान का एक बौद्धधर्मावलम्बी शिकारी था। वह आकाश में उड़ते हुए नभचारी पक्षियों का शिकार किया करता था । उसके दो पुत्रियाँ थीं। पिता के द्वारा निर्दोष पक्षियों का वध उनको अच्छा नहीं लगता था । बालिकाओं का कोमल स्वभाव पिता को इस प्रकार के शिकार करने को मना करता था, पर शिकार का चस्का लग जाने पर शिकारी किसी की भी सलाह नहीं मानता । पुत्रियों द्वारा पिता को समझाने का कोई परिणाम न निकला। एक दिन दोनों लड़कियाँ तालाब में जलक्रीड़ा कर रही थी। संयोगवश वह शिकारी भी शिकार करने के लिए बाहर निकला। अभी अधिक रात नहीं बीती थी। शिकारी को ऐसा भ्रम हुआ कि कोई जंगली जानवर तालाब में पानी पी रहा है । उसने एकदम तीर छोड़ा। तीर छोड़ते ही वह सीधा उन दोनों लड़कियों पर जा लगा । वे वहीं ढेर हो गईं। नजदीक आकर शिकारी ने देखा तो उसे घोर पश्चात्ताप हुआ-हाय ! ये मेरी प्यारी लड़कियाँ ही मेरे हाथ से मारी गयीं। उसने अपने धनुषबाण वहीं फेंक दिये और प्रतिज्ञा कर ली कि अब भविष्य में मैं कभी शिकार नहीं करूंगा।
__ महाभारत की एक प्रसिद्ध घटना है कि जराकुमार शिकार का बहुत शौकीन था । उसे भगवान अरिष्टनेमि से ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण की मृत्यु उसी के तीर से होगी। तब वह यह सोचकर द्वारिका छोड़कर जंगल में रहने लगा कि यहाँ रहूँगा तो शायद कभी मेरे हाथ से भाई श्रीकृष्ण की मृत्यु हो जाय । परन्तु होनहार को कौन टाल सकता है ?
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