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________________ १२८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ जड़ें मजबूत होंगी और वेश्यावर्ग की जड़ें मजबूत करने का अर्थ है-समाज में सर्वत्र झूठ, चालाकी, अनीति, उन्मुक्त व्यभिचार, छल, आर्थिक शोषण, फैशन, विलास आदि अनिष्टों की जड़ें मजबूत करना । उन अनिष्टों का चेप पारिवारिक, सामाजिक एवं राष्ट्रीय संस्था को भी लगेगा, जिससे समाज, परिवार या राष्ट्र स्वच्छ रहने के बजाय अधिक कलुषित हो जाएगा। प्राचीन काल में आम आदमी वेश्या के यहाँ नहीं जाता था; क्योंकि जनसाधारण की इतनी हैसियत नहीं होती थी कि वह वेश्या के यहाँ सीधा पहुँच सके । बिना धन-वैभव के वेश्या किसी का भी स्वागत नहीं करती, चाहे वह कितने ही उच्च कुल का क्यों न हो। इसलिए वेश्या के यहाँ आम आदमी कदापि नहीं पहुंच सकता था। वेश्या के यहाँ राजा, महाराजा, बादशाह या कोई धनाढ्य पुरुष ही पहुँच सकता था। तब आज यदि आज वेश्यावर्ग को आम जनता के लिए खुला कर दिया जाएगा तो परिवार या समाज स्वस्थ एवं स्वच्छ रहने के बदले कई गुना अधिक अस्वस्थ, अस्वच्छ एवं पाप-मलिन हो जाएया । परिवार एवं समाज की स्त्रियां भी पति-पत्नी में सहसा कोई अनबन, विचार-भेद, संघर्ष या मनमुटाव होते ही पत्नी, संभव है, वेश्यावृत्ति के निरंकुश व्यापार मे लग जाये और पति और कोई चारा न देख वेश्या के यहाँ जाकर अपनी काम पिपासा शान्त करे । इस प्रकार पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे के प्रति गैरजिम्मेदार, गैर-वफादार एवं अहंकारी बनकर गृहस्थधर्म की नैतिक सीमा का भी उल्लंघन कर जाएँगे । ऐसी स्थिति में वेश्यावर्ग का समर्थन कैसे किया जा सकता है ? साथ ही समाज की गृहिणियों के शील की रक्षा वेश्यावर्ग के द्वारा शील भंग करने से कैसे हो जाएगी ? प्रत्युत वेश्यावर्ग के शील-भंग पर गृहिणी का शील-संरक्षण कब तक टिका रह सकता है ? यह तो ऐसा ही है, जैसे कोई अपने घर में निकले हुए साँप को पड़ौसी के आँगन में फेंककर स्वयं सही-सलामत महसूस करे, या अपने भयंकर रोग को भगवान से प्रार्थना करके दूसरे के शरीर में धकेलकर स्वयं नीरोग अनुभव करे । यह सच है कि वेश्यावर्ग गन्दा, नीच, घृणित और किसी न किसी भयंकर चेपी रोग से आक्रान्त रहता है । वेश्यागृह में प्रविष्ट होकर क्या कोई भी युवक इनके संक्रमक रोगों से बच सकता है ? कभी नहीं बचेगा। जब युवक विषाक्त रोगों से आक्रान्त हो जाएगा तो क्या उस रोग के कीटाणु उसकी पत्नी एवं सद्यःजात बालबच्चों में नहीं फैलेंगे ? इस प्रकार अनेक रोगों को वेश्यागृह से ढोकर लाने वाला युवक वेश्यावर्ग का पोषण करके अपने गृहस्थाश्रम या परिवार को कैसे पवित्र रख सकेगा ? वह तो वेश्यावर्ग की अपवित्रता को अपने परिवार में लायेगा ही। ___ अपवित्र वेश्यावर्ग के रहने से शील की मर्यादा में बद्ध परिवार कैसे पवित्र रह सकेगा? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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