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मद्य में आसक्ति से यश का नाश : १२१
मुगलों के राज्य का पतन कुछ बादशाहों की बढ़ती शराबपरस्ती ही थी । यही यहाँ के राजा-महाराजाओं और ठाकुरों का हाल था ।
"
कहते हैं--बहादुरशाह का पोता मुहम्मदशाह दिल्ली के तख्त पर राज्य करता था । यह वह समय था, जबकि नादिरशाह पश्चिम के मार्ग से भारत के प्रान्तों को लूटता हुआ दिल्ली तक आ धमका था । उसने दिल्ली के निकट पहुंचकर बादशाह को लिखा- "दो करोड़ रुपया दो, वरना दिल्ली की ईंट से ईंट बजा दूंगा जब उसका दूत यह पत्र लेकर दरबार में पहुँचा तो बादशाह शराब पी रहे थे, शेरें तथा गजलें गाई जा रही थीं । अमीर उमराव उन्हें 'क्लामुल्मुलुक लुकुलकलाम' कहकर झुक-झुक सलामें अदा कर रहे थे । दूत ने खत दिया । बादशाह ने बजीर से कहा - "पढ़ो क्या है ?"
वजीर ने पढ़ा और कहा- " हजूर ! ऐसे गुस्ताखी के अल्फाज हैं कि जहाँपनाह के सुनने काबिल नहीं ।"
बादशाह बोला – “ताहम पढ़ो।" खत सुनकर कहा - " क्या यह मुमकिन है कि यह शख्स दिल्ली की ईंट से ईंट बजा दे ?"
खुशामदी दरबारियों ने कहा "हजूर ! कतई नामुमकिन है ।"
तब बादशाह ने हुक्म दिया - " यह खत शराब की सुराही में डुबो दिया जाए और इसके नाम पर एक-एक दौर और चले । "
जब दौर खत्म हुआ तो दूत ने पूछा - " हजूर ! बंदे को वया इरशाद है ?” बादशाह ने हुक्म दिया – “ ५०० अशर्फियाँ और एक दुशाला इसे इनाम दिया जाए ।" दूत चला गया। नादिरशाह तूफान की भाँति दिल्ली में घुस आया। उसने तीन दिन तक कत्लेआम किया । असंख्य हीरे-जवाहरात और तख्ते -ताऊस भी लूट ले गया । दस करोड़ का माल उसे लूट में मिला । बादशाह शराब में मतवाला न होता तो इतनी लूट, फजीहत और अपकीर्ति नहीं हो सकती थी ? राष्ट्रीय यश भी नष्ट न होता ।
इन सब पहलुओं से मद्यपान के अनेकानेक दुर्गुणों को देखते हुए महर्षि गौतम ने मद्य से विरत होने का संकेत करते हुए स्पष्ट कह दिया
'मज्जं पसत्तस्स जसस्स नासो'
मद्यासक्त मनुष्य के सभी क्षेत्रों का यश नष्ट हो जाता है ।
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