________________
८८. वेश्या संग से कुल का नाश धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज मैं आपके समक्ष ऐसे दुर्व्यसनयुक्त जीवन का विश्लेषण करना चाहता हूँ, जिस दुर्व्यसन के लग जाने पर मनुष्य के कुल का नाश हो जाता है। आप समझते होंगे कि केवल एक परिवार का नाश होता हो तो कोई बात नहीं । मैं आपको यह बताने का प्रयत्न करूँगा कि वेश्यागमन से केवल एक परिवार या कुटुम्ब का ही नहीं, सारे कुल और वंश का विनाश होता है, जो स्वास्थ्य, धन और अन्य भौतिक वस्तुओं के खोने से भी बढ़कर विनाश है । कुल का विनाश बहुत बड़ा विनाश है, क्योंकि कुल के साथ कई चीजें जुड़ी हुई हैं। महर्षि गौतम ने इस जीवनसूत्र में बताया है
'वेसा पसत्तस्स कुलस्स नासो' -वेश्या में आसक्त व्यक्ति के कुल का नाश होता है ।
गौतमकुलक का यह ७४वाँ जीवनसूत्र है। आइए, इस पर गम्भीरता से विचार करें कि वेश्या कौन होती है ? किस कारण मूर्ख लोग उसमें आसक्त होते हैं ? वेश्यागमन के क्या-क्या कारण हैं ? तथा वेश्यागमन से कौन-कौन-से कुल का नाशं होता है ? वेश्या : क्या है, क्या नहीं ?
वेश्या एक ऐसी कलंकित और पतित नारी है, जो अपना शरीर बेचकर कामी पुरुषों को काम की धधकती आग में जलाती रहती है । भर्तृहरि वेश्या का परिचय एक ही श्लोक के द्वारा देते हैं
वेश्याऽसौ मदनज्वाला रूपेन्धन समेक्षिता।
कामिभिर्यत्र हयन्ते यौवनानि धननि च ॥ –वेश्या क्या है ? वेश्या कामाग्नि की लपट है, जो रूप-रूपी ईन्धन से सजी रहती है, जिस रूपेन्धनसुसज्जित वेश्या नाम की कामज्वाला में कामी पतंगे अपने यौवन और धन (द्रव्य, रूप, स्वास्थ्य, बल एवं चरित्र) की आहुति देते रहते हैं।
वेश्या बहुत ही लुभावनी होती है। साँप का सौन्दर्य और संखिये की उज्ज्वलता भी कम लुभावनी नहीं होती, मगर ये दोनो वस्तुएँ अत्यन्त त्रासदायक और मारक हैं, वैसे ही वेश्या का सौन्दर्य भी अत्यन्त त्रासदायक है, घातक है, धन, कुल, प्रतिष्ठा, शक्ति, स्वास्थ्य आदि का नाशक है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org