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१२० : आनन्द प्रवचन : भाग १२
आई हुई थीं। दिनभर समाज-सेवाकार्य करके रात्रि को मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित किया गया था। जिसकी समाप्ति के बाद सभी शयन के लिए चली गईं। आधी रात गये, दो तीन व्यक्ति शराब में धुत होकर वहाँ आए और अपनी पैशाचिक वृत्ति का परिचय देते हुए इन महिलाओं के साथ बलात्कार में प्रवृत्त हुए ।
क्या ऐसे शराबी व्यक्ति का कोई भी महिला विश्वास या यशोगान कर सकती है ? कदापि नहीं। ऐसे मद्यासक्त व्यक्ति अपने यश को स्वयं धो डालते हैं। आध्यात्मिक जीवन में भी यशोनाश
___ कई अध्यात्म की डींग हाँकने वाले लोग योग-साधना या सुरत लगाने के नाम पर मदिरा भवानी की उपासना खुलकर करते हैं, या वाममार्ग का आश्रय लेकर मद्य आदि पंच मकार का आश्रय लेते हैं । क्या वे अध्यात्म-क्षेत्र का मुख उज्ज्वल करते हैं या उस पर कलंक की कालिमा पोतते हैं। सचमुच आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रविष्ट ऐसे शराबी अध्यात्म को बदनाम करते हैं, उनका यश नष्ट हो ही जाता है । राजकीय जीवन में यशोनाश
राजकीय या राष्ट्रीय जीवन में जहाँ शराब के दौर चलते हैं, राजनेताओं, दरबारियों, शासकों या राजमन्त्रियों में जहाँ शराब को राष्ट्र या राज्य के लिए सर्वनाश का कारण समझते हुए भी नहीं छोड़ी जाती, न ही शराब पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है, वहाँ उस राज्य या राष्ट्र के यश का तो सत्यानाश ही समझिये । इतना ही नहीं, उस राज्य या राष्ट्र की आर्थिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति या प्रगति होनी कठिन होती है। जनता या प्रजा की मद्यपान से सर्वनाश के कारण हृदय से निकली हुई आहे राष्ट्रीय जीवन का सर्वनाश करने से नहीं चूकतीं।
- यादवों को राज्यरक्षा के लिए श्रीकृष्णजी ने जो तीन कर्तव्य बताये, उनमें दूसरा कर्तव्य मद्यपानत्याग था। पहला था- द्यूतत्याग और व्यभिचार-त्याग । मगर यादवकुमारों ने उनकी न मानी । मदिरा के घड़े जो खाई में डलवा दिये थे, उन्हें निकालकर मद्य पिया । द्वैपायन ऋषि से छेड़खानी की फलतः वे अत्यन्त क्रुद्ध हो गए । उसी समय बलरामजी के साथ श्रीकृष्ण वहाँ पहुँचे, ऋषि से माफी मांगी। उन्होंने द्वारिका नगरी के विनाश का श्राप दे दिया सिर्फ श्रीकृष्ण और बलराम को छोड़कर । वही हुआ जो होना था। इस प्रकार यादवों ने राष्ट्र यश पर कलंक लगा दिया।
हवीं शताब्दी में अरब का प्रख्यात सौदागर भारत आया तो उसने देखाभारत में कहीं भी शराब की दुकान नहीं है। अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पापों, दुष्कर्मों और क्रूरता की जड़ शराब को समझकर तुरंत सेवकों को आज्ञा दी किशराब की सुराहियों, प्यालों और बर्तनों को तोड़-फोड़ दो। अपने सामने उसने शराब को जमीन पर फैला दिया। इस घटना से प्रजा ने शराब पीनी छोड़ दी। किन्तु
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