SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मद्य में आसक्ति से यश का नाश : ११६ मद्यपायी को उसके सभी स्वजन धिक्कारते हैं, अनादर करते हैं, उसके पास नहीं बैठना चाहते और न ही उससे कोई वास्ता रखना चाहते हैं । यह सब मद्यवश उसके यशोनाश होने के कारण ही होता है। ___ कई बार तो मद्य पीने वाले व्यक्ति अपनी पत्नी की कमाई से लाये हुए आटे को बेचकर मदिरा पीता है; बेचारी पत्नी लज्जावश पड़ौसी के यहाँ से भूख से बिलबिलाते बच्चों के लिए आटा लाकर रोटी बनाकर खिलाती है। क्या शराबी की ऐसी दयनीय दशा देखकर कोई उसका यशोगान करेगा, अथवा ऐसी दुःस्थिति के कारण उसके पौरुष की, उसके व्यक्तित्व की जगह-जगह निन्दा होगी, अपयश होगा? बनारस की मद्यनिषेधक मंडली के प्रमुख केशवराम ने सन् १८६२ में मद्यनिषेध पर भाषण दिया। भाषण समाप्त होते ही ७ कोली-पत्नियाँ उनके सामने रो-रोकर कहने लगीं- हमारे पतियों ने शराब पीकर कर्ज चुकाने में सब रुपये, वस्त्राभूषण व अन्य सब सामान लुटा दिये । हमारे पास सिर्फ पहनने के दो वस्त्र बचे हैं। बताइए, हम क्या करें ? हमारी जिन्दगी मौत से भी भयंकर हो गई है। क्या ऐसे शराबी पति पारिवारिक जीवन के लिए अभिशाप नहीं हैं ? सामाजिक जीवन में यश का नाश मद्यपान करने वाले का यश समाज में कहाँ टिक पाता है ? आये दिन शराब के कारण होने वाली उसकी हरकतों या हलचलों को देखकर उसकी कुचेष्टाओं का साक्षी बना हुआ समाज उसे पागल, बुद्ध , निर्लज्ज, ढीठ, पापी, पारदारिक, लंपट, शराबी, बदमाश आदि नामों से पुकारता है । कोई भी व्यक्ति समाज में उसकी प्रशंसा नहीं करता फिर भले ही वह उच्चकोटि का विद्वान हो, धनी हो, सत्ताधीश हो, पदाधिकारी हो, वैद्य, वकील या कवि हो, संगीतज्ञ हो या साहित्यकार हो, कलाकार हो या वक्ता हो । मद्य जिसके पीछे भूत की तरह लग गया, उसके यश पर कालिख पुतते देर नहीं लगती। समाज का कोई व्यक्ति उसके वचन पर विश्वास नहीं करता। यहाँ तक कि उसके यहां रहने वाला नौकर भी उस पर विश्वास नहीं करता । समाज में उसकी कोई इज्जत नहीं करता। सभी उसे घृणा की दृष्टि से देखते हैं । हदीस में तो स्पष्ट रूप से कहा गया है-“ऐ मुसलमानो ! तुम शराबी को सलाम मत करना । वह बीमार पड़े तो उसका कुशल-मंगल पूछने न जाना । उसकी मौत के पीछे नमाज भी न पढ़ना।" किसी-किसी जाति-पंचायत या समाज में तो शराबी का सामाजिक बहिष्कार कर दिया जाता है । कई-कई अपयश के कामी शराबी लम्पट बनकर अपने धन और अधिकार के बल पर अबलाओं पर वासनायुक्त आक्रमण करके अपने जीवन को कलंकित कर देते हैं । एक जगह भारतमाता की सेवा के पवित्र उद्देश्य को लेकर कुछ युवतियाँ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy