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________________ ११२ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ हो जाता है, वैसे ही शराब से मनुष्य क्षणिक उत्तेजनावश भागने-दौड़ते लगता है, तूफान, या उपद्रव मचाता है, तोड़-फोड़, मार-काट मचाता है मगर इसके बाद वह लुजपुंज होकर पड़ जाता है। मद्य : गर्मी नहीं लाता कई लोग कहते हैं, ठंडे मुल्कों में मद्य पीना अनिवार्य होता है, क्योंकि यह गर्मी लाता है परन्तु भी एक भ्रान्ति है। शराब पीते ही रक्तनलिकाओं में एक सनसनी पैदा होती है, पेट और छाती में जलन पैदा होती है, क्षणिक गर्मी का आभास होता है; मगर आगे चलकर वह अत्यधिक ताप परोक्ष रूप से बाहर निकलने लगता है, इससे शरीर की गर्मी कम होती है। शराबी नशे में शरीर की गर्मी का ठीक ज्ञान नहीं कर पाता। सन् १७८६ की बात है । रूस की रानी कैथरिना के कहने से तत्कालीन मुख्यमन्त्री शहजादे वाटुसकिन ने किसानों को एक बृहृद् राजभोज दिया था । उस अवसर पर किसानों को मनमानी शराब पिलाई । मादकता में बेभान किसान रातभर खेतों में पड़े रहे। उस रात इतनी अधिक ठंड पड़ी कि प्रातःकाल होने तक १६ हजार किसान मौत की गोद में सो गए । इससे स्पष्ट है कि शराब पीने से सर्दी सहन करने की शक्ति घट जाती है । मद्य : एक घातक विष मद्य बनाने की जो प्रक्रिया है, उसे देख-सुनकर कोई भी व्यक्ति नहीं कह सकता कि मद्य अमृत है, संजीवन है । वह सड़ाकर बनाया जाता है, उसमें अनेक कीटाणु पैदा हो जाते हैं । मद्य एक तरह से उन कीटाणुओं को भट्टी में उबालकर अर्क निकालना है । डा० टेल वेवस्टर कहते हैं-"जो पदार्थ खून के साथ मिलने से स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है, मनुष्य को मौत का उपहार देता है उसे विष समझो, जो पदार्थ प्राणिमात्र पर अत्यन्त हानिकारक प्रभाव डालता है, उसे भी विष समझो, जो वस्तु प्राणिमात्र के तन-मन के लिए घातक है, मारक है उसे भी विष समझो।" शराब में जो अलकोहल होता है वह बहुत घातक विष है। यदि सौ बूंद पानी में एक बूंद अलकोहल मिला है और उसमें एक छोटा-सा कीड़ा पड़ जाए तो तुरन्त मर जाएगा। इसी तरह अलकोहल यदि अंडे पर पड़ जाए तो उसका जीव तुरन्त नष्ट हो जायगा। यदि हजार बूद रक्त में ६ बूद अलकोहल मिल जाए तो आदमी मर जाता है । डॉ० रिचर्डसन का कहना है-"अलकोहल शरीरस्थ लवण जीवाणुओं को मारकर शरीर को शून्य बना देने वाला एक विष है । यदि उसका प्रयोग मद्य के रूप में किया जाए तो उसका प्रभाव भी विष जैसा घातक सिद्ध होगा।" अतः मद्य स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से विजातीय तत्त्व है, घातक विष है। मद्य : भयंकर शत्र, शैतान का शस्त्र __ शत्र प्रतिपक्षी की शक्ति को नष्ट कर देता है, हानि पहुँचाता है, उसका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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