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________________ मद्य में आसक्ति से यश का नाश : ११३ धन छीन लेता है, उसे यातनाएं देता है । मद्य भी मानव का भयंकर शत्र है। यह मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक सभी शक्तियों का नाश कर देता है, मनुष्य को अनेक रोगों से ग्रस्त बनाकर धन, धर्म और बल की हानि पहुंचाता है, अनेक प्रकार की शारीरिक-मानसिक पीड़ा देता है। इस्लामधर्म में शराब को नापाक और शैतान का कुकृत्य एवं खुदा तथा नमाज से दूर रखने वाला शैतान का हथियार माना है। शैतान मद्य का रूप धारण करके मनुष्य की विवेक-बुद्धि पर पर्दा डाल देता है । जिससे मनुष्य अनेक पापकर्मों में प्रवृत्त हो जाता है । इसीलिए महात्मा गांधी ने तमाम नशों को 'शैतान के हथियार' कहा था । पाश्चात्य विचारक 'आदम क्लार्क' ने भी इसी बात का समर्थन किया है Strong drink is not only the devil's way into a man, but man's way to the devil. "मद्यपान मनुष्य में सिर्फ दैत्य के प्रवेश करने का मार्ग ही नहीं है, अपितु मनुष्य का दैत्य (शैतान) की ओर जाने का मार्ग भी है।" ___ मद्य : सभी धर्मों में निषिद्ध महात्मा बुद्ध ने पंचशील में मद्य-निषेध को पंचम शील (व्रत) के रूप में स्थापित किया। तथागत बुद्ध के जीवन की जातक-कथा में वर्णित घटना इस प्रकार है एक बार सुरामहोत्सव पर ५०० स्त्रियों ने सुरापान किया। विशाखा ने सुरापान नहीं किया। उन ५०० स्त्रियों ने बुद्ध की धर्मसभा में आकर बहुत ही अभद्रता का प्रदर्शन प्रारम्भ कर दिया। बुद्ध ने अपने योग-बल से उनका मद उतारा और अशीलता का निवारण किया । मद्य की भयंकर अनिष्टकारकता को देखकर तथागत बुद्ध ने कहा था- वेश्या और सुरापान दोनों ही अप्रिय हैं, त्याज्य हैं। वेश्या धन का और सुरा परिवार का हरण करके मनुष्य को ऐसा बना देती है कि उसका मूल्य शून्य जितना भी नहीं रह जाता । मनुष्य-समाज के कल्याण के लिए नैतिक एवं सामाजिक दृष्टि से इस अभिशाप का अन्त करना ही चाहिए । संसार में मदिरा मनुष्य मात्र की प्रसिद्ध शत्रु है । ...... पर सुरादेवी से सदैव भयभीत रहना, क्योंकि यह पाप और अनाचारों की जननी है। ईसाईधर्म में भी मद्य का सख्त निषेध बाइबिल में किया गया है। वहां सेम्युअल को उपदेश देते हुए स्वयं ईसामसीह ने राजा, राजकुमार, न्यायाधीश तथा सुखपूर्वक जीवन जीने वालों के लिए मद्यपान का सख्त निषेध किया है। 'Jesus Christ' (ईसामसीह) सेम्सन की माँ और एरोन को उपदेश देते हुए कहते हैं "Drink ni) wine, nor strong drink thou, nor thy children, lest ye die." -किसी भी प्रकार की शराब मत पीओ, कोई भी नशीला तीव्र पेय तुम मत पीओ, और न ही तुम अपने बच्चों को पिलाओ, अन्यथा तुम लोग (सब प्रकार से) नष्ट हो जाओगे। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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