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मद्य में आसक्ति से यश का नाश : १११
मद्य : धर्म, ईमान आदि का ध्यान भुलाने वाला मद्य पीने वाले का कोई धर्म-कर्म नहीं रहता। वह गंदी जगह में, टट्टी और पेशाब के स्थानों में बेसुध होकर पड़ जाता है । अहिंसा, सत्य आदि धर्म तो उसके जीवन से कभी के विदा हो चुकते हैं । शराब के नशे में वह नीति, न्याय, ईमानदारी आदि को भी भूल जाता है । अपने धर्म के नियमों एवं मर्यादाओं को भी शराबी ताक में रख देता है । आत्मा का विकास करना तो दूर रहा, आत्मिक शक्तियों के अवरोधक क्रोध आदि कषाय एवं विषयासक्ति शराबी में अत्यधिक मात्रा में बढ़ जाती है।
मद्य : पाचन-शक्ति नहीं बढ़ाता कई लोग कहते हैं भोजन के बाद शराब पीने से वह पाचन-शक्ति बढ़ाती है। परन्तु शराब भोजन को ज्यों का त्यों रखती है, पचाती नहीं । वह पाचक-रस बनने नहीं देती । शराब में पड़ने वाले व सड़ने वाले कोई भी पदार्थ भोजन को पचा नहीं सकते।
मद्य : शक्तिवर्द्धक एवं स्फूर्तिदायक नहीं बहुत से लोग कहते हैं कि मद्य एक टॉनिक है, इससे शरीर में शक्ति एवं स्फूर्ति आती है, थकान दूर हो जाती है, यह ताजगी लाती और भूख बढ़ाती है। किन्तु यह मिथ्या धारणा है । शराब पीकर जो पर्वतारोही, या सैनिक दल चढ़ाई करते हैं, वे थोड़ी-सी दूर चल कर थक जाते हैं । शराब निरन्तर और देर तक श्रम करने की शक्ति को घटा देती है ।
मद्य ही क्यों, जितनी भी नशीली वस्तुएँ हैं-जैसे अफीम, भंग, तम्बाकू, गांजा आदि वे सब न तो स्वादिष्ट हैं, न पौष्टिक हैं और न उपयोगी। शरीर उन्हें नहीं चाहता, चीजें महँगी भी हैं, फिर भी मनुष्य अविवेकवश तन, मन, धन और बल की अपार क्षति उठाता है। शराब से एक बार उत्तेजना जरूर बढ़ती है, परन्तु इसे शक्ति अथवा गर्मी समझना भ्रम है ।
- मद्य : न पोषक, न अनिवार्य खान-पान शराब में ऐसा कोई विटामिन या पोषक तत्त्व नहीं है कि उसके बिना काम ही न चल सके । भोजन का अर्थ होता है-रक्तोत्पादक पदार्थ । किसी भी प्रकार के मद्य में रक्तोत्पादक तत्त्व या पोषणदायक तत्त्व मिलना कठिन है। इसी प्रकार शराब भोजन को पचा नहीं पाती, फिर भूख कैसे लगेगी ? जठराग्नि कैसे तेज होगी ? भूख को सूचित करने वाले पेट के ज्ञानतन्तु तो चेतना शून्य हो जाते हैं, फिर कसे कहा जा सकता है कि शराब भूख बढ़ाती है या लगाती है। शराब बैल को आरा भौंककर चलाये जाने के समान क्षणिक उत्तेजक है। आरा भौंकने से बैल दौड़ता है, उतावला चलने लगता है, किन्तु आगे चलकर वह थककर लोथ-पोथ
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