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________________ ११० : आनन्द प्रवचन : भाग १२ पानी के प्रभाव से उसका नशा उतरा, अपनी स्थिति को समझा । इज्जतदार आदमी था, लज्जा आना स्वाभाविक था । इसलिए उसने शपथ ले ली कि वह भविष्य में कभी महफिल में सम्मिलित नहीं होगा और न ही शराब पियेगा । यह है, शराब का असली स्वरूप और प्रतिष्ठित व्यक्ति के लिए त्याज्य ! मद्य : कई रोगों का जनक इसके अतिरिक्त मद्य अनेक बीमारियों को पैदा करता है । मानसिक रोग, पागलपन, हिस्टीरिया, आदि तो होते ही हैं, शारीरिक रोग भी कम नहीं होते । शराब से फेफड़े, हृदय, मस्तिष्क की नसें कमजोर हो जाती हैं। शराब में विद्यमान अल्कोहल आमाशय के भीतरी भाग में जलन पैदा कर देती है । कुछ दिनों तक मद्यपान करने से भोजन की नली तथा आमाशय की भीतरी त्वचा में सूजन आ जाती है, इस रोग 'को गैस्ट्रोटीज कहते हैं । मद्य पीने वालों के पेट की भीतरी दीवारों में आमाशयिक व्रण (गैस्ट्रिक अल्सर्स) तक हो जाते हैं । यह पेट में गये भोजन को अधिक सरल बनाकर हजम होने में रुकावट पैदा कर देता है । इस रोग से दर्द के साथ भूख खो जाती है, प्यास बहुत अधिक लगती है । यकृत की कठोरता ( सिरोसिस) हो जाने से यकृत में सूजन आ जाती है, पीलिया भी हो जाता है । भूखे पेट शराब पीते ही पाँच मिनिट में रक्तचाप बढ़ जाता है । भोजन के बाद पीने से कार्बोनिक एसिड गैस पैदा हो जाती है, कमजोर रक्त इस दूषित गैस को बाहर नहीं निकाल पाता । लीवर पत्थर जैसा हो जाता है। शराब से दोनों गुर्दे खराब हो जाते हैं जिससे अतिमूत्र रोग हो जाता है। शराब से मुटापा बढ़ जाता है । हाथ-पैरों में कंपकपी, गठिया, फालिज (लकवा), चमड़ी का रोग, आँखों की खराबी, खांसी, दमा, ब्लडप्रेशर, मन्दाग्नि, टी. बी., श्वास रोग आदि अनेकों रोग शराब से लग जाते हैं । तिल्ली बढ़ जाती है, पेट सूज जाता है, पेट में फोड़ा व जख्म हो जाने से कभी - कभी खून की उल्टी आकर मौत तक हो जाती है । पागलपन का मुख्य कारण शराब है । जीभ का कैंसर भी इससे हो जाता है । लगातार मद्यपान करने से शरीर में रोगों से लड़ने और उन्हें रोकने की शक्ति नहीं रहती । कोई भी दवा असर नहीं करती । मद्य : सभी व्यसनों का मूल मद्य सेवन करने वाले व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता, सोचने-समझने की शक्ति प्रायः नष्ट हो जाती है, जिससे वह कोई भी दुष्कृत्य करने से नहीं चूकता। मद्य पीने वाला व्यभिचार में प्रवृत्त हो जाता है, वेश्यागमन और परस्त्रीगमन के अलावा मद्य के साथ मांसाहार, शिकार आदि कुव्यसन भो लग जाते हैं । शराब पीने वाले के पास जब शराब के लिए पैसा नहीं होता तो वह चोरी, जूआ, डकैती, बेईमानी, ठगी आदि अनैतिक धंधे करता है । इसलिए सुरापान सभी व्यसनों का मूल है, अनर्थों की जड़ है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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