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________________ मद्य में आसक्ति से यश का नाश : १०६ यत्पीत्वा गुरवेऽपि कुप्यति विना हेतोस्तथा रोदिति, भ्रान्ति याति करोति साहसमपि व्याधेर्भवत्यास्पदम् । कोपीनं च जहाति लोकपुरतो उन्मत्तवच्चेष्टते, तल्लज्जापरिपन्थि मोहजनकं मह्यं न पेयं नरैः ॥ -जिसे पीकर मनुष्य गुरुजनों पर भी अकारण क्रोध करता है, रोता है, चित्तभ्रम हो जाता है, कभी साहस भी कर बैठता है, रोग का घर बन जाता है, कभी लंगोटी भी खोलकर नंगा हो जाता है, और लोगों के सामने पागल की तरह चेष्टा करता है, ऐसा मोहजनक एवं लज्जाविरोधी मद्य है, जिसे मनुष्यों को कदापि नहीं चाहिए। ___ सचमुच मद्य के नशे में चूर होकर मनुष्य इन सब मूर्खतापूर्ण चेष्टाओं को करता है । शराबी व्यक्ति नशे में चूर होकर गाली-गलौज और मार-पीट भी करने लगता है । वह सड़क पर या नालियों में लड़खड़ाकर औंधे मुंह गिर जाता है । उसके मुंह में कुत्ते पेशाब कर देते हैं। वह पशु-सा विवेकहीन व्यवहार करने लगता एक सम्पन्न घर का व्यक्ति एक बारात में गया था। वहाँ शराब का खूब दौर चला, वेश्या की भी महफिल थी। वेश्या को लेकर बरातियों में आपस में गुत्थमगुत्था होने लगी। कुछ होश में आया तो उसे क्या सनक सूझी कि वह आधी रात को ही अपने गाँव की ओर पैदल चल दिया । रात अधिक बीत ही चुकी थी, उस पर वह खूब पिये हुए भी था । लड़खड़ाते जाते देखकर कई लड़के उसके पीछे हो लिए और हल्ला मचाते, तालियाँ पीटते और उसका मखौल उड़ाते चलने लगे । वह व्यक्ति शराब के नशे में पगडंडी पर लड़खड़ाते हुए अपनी धुन में चल ही रहा था, अचानक पगडंडी चूक गया, जिससे पगडंडी के किनारे पोखर में जा गिरा और लगा छटपटाने । ___ लड़के उद्दण्ड स्वभाव के होते ही हैं। लगे जोर-जोर से तालियां बजाने और चिल्ला-चिल्ला कर लगे चिड़ाने-"और पियेगा शराब ?" वह आदमी भी तुनुकमिजाज था। छटपटाता हुआ हाथ-पैर मारता तुरंत उत्तर देता जा रहा था--"हाँ, पियूँगा और पियूगा।" आखिर एक परिचित सज्जन उधर से गुजरे तो उन्हें उस पर दया आ गई। उन्होंने उसे पोखर से निकाल कर गाँव में पहुँचवाया, उसके हाथ-पैर धुलवाए। १. देखिये, वसुनन्दि श्रावकाचार में मद्य के प्रभाव का वर्णन "अइलंघिओ विचिठ्ठो पडेइ रत्थापयंगणे मत्तो। पडियस्स सारमेया वयणं विलिहंति जिब्भाए ॥ उच्चारं पासवणं तत्थेव कुणंति तो समुल्लवइ । पडिओ विसुरा मिटठो पुणो वि मेदेइ मूढमई ॥" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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