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________________ १०६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ यही हाल एक अन्य शराबी का हुआ जो शराब पीने ने बाद बहकी हुई अवस्था में आगे बढ़ा और रेलगाड़ी से कट मरा । उसकी खोपड़ी की हड्डी टूट गई पूरा का पूरा भेजा बाहर निकल आया । डॉक्टर ने बता दिया कि उसके दिमाग में काफी शराब पड़ी थी । स्मृतिविभ्रम पैदा करना तो शराब का काम ही है । शराब के कारण याददाश्त मारी जाती है । भगवद्गीता में ठीक ही कहा है स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो, बुद्धिनाशात् प्रणश्यति । - स्मृति के गड़बड़ाने से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश से व्यक्ति का सर्वनाश होता है । एक धनिक सज्जन शराब के बुरी तरह आदी हो गये, तब उन्हें कुछ भी याद नहीं रहने लगा । एक दिन जब उसने शराब नहीं पी रखी थी तब वह अपने दो- तीन मित्रों सहित भोजन करने बैठे । उनकी पत्नी उन्हें परोस रही थी किन्तु कई बार उनका हाथ रुक जाता, तब वह उन्हें संकेत देकर पुनः खाने के लिये प्रेरित करती । किन्तु वे पूरियाँ ही पूरियां बिना सब्जी के खाने लगे । जब पत्नी ने कहा"यह सब्जी है, इसे भी तो लीजिए" किन्तु फिर वही हाल । केवल सब्जी खाने लगे । स्मृति की ऐसी हालत तो शराब न पीया हुआ हो तब हो जाती है, शराब पी लेने पर तो स्मृति की हालत का कहना ही क्या ? शराब के कारण मनुष्य यहाँ तक होश भुला बैठता है कि उसे पता ही नहीं चलता कि मैं क्या कर रहा हूँ, किसके साथ क्या व्यवहार कर रहा हूँ । एक गाँव में बारात आई । अधिकतर बराती नशे में धुत थे । फिर भी शराब के दौर चल रहे थे । वेश्या का नाच भी हो रहा था । एक बराती ने पाँच रुपये का नोट दूल्हे पर न्यौछावर करके वेश्या को दिया तो दूसरे ने दस रुपये का, तीसरे ने उसी होड़ से दस-दस के दो नोट न्यौछावर करके अपनी शान प्रदर्शित की, चौथा कब पीछे रहने वाला था, उसने पाँच-पाँच रुपये के ६ नोट न्यौछावर करके उसे दे दिये । एक महाशय, जो अधिक मद्य पीये हुए थे, लुटा रहे थे। लोगों ने उन्हें महफिल वाले स्थान से नीचे उतार दिया, तब भी उन्होंने वहीं से एक बांस में सौ रुपये का नोट बांधकर ऊपर उठा उस वेश्या तक पहुँचाया । यह सब नोट कौन न्यौछावर करवा रही थी ? शराब ही तो थी । उन लोगों में उस समय विवेक, विचार था ही कहाँ ? शराब ही उनके दिमाग में आधिपत्य जमाये हुए थी । अंधाधुंध नोट पर नोट इधर रुपयों के लोभ से वह वेश्या नाचते-नाचते अनेक हाव-भाव दिखाती, आंखें मटकाती, कभी एक के और कभी दूसरे के सामने तनिक मुस्कराकर दो उंगलियों में नोट झपटकर पुनः अपने स्थान पर लौट जाती । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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