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________________ मद्य में आसक्ति से यश का नाश : १०३ __ मद्य : बुद्धिनाशक क्यों ? मद्यपान से विवेकबुद्धि और स्मृति नष्ट हो जाती है, उसी प्रकार किसी हद तक भांग, गांजा, अफीम आदि से भी हो जाती है। किन्तु मद्य सबसे तीव्र नशा पैदा करता है, वह उत्तेजक एवं तीक्ष्ण पेय पदार्थ है । मद्य ज्यों ही शरीर में पहुँचती है, तीव्र हलचल पैदा होने लगती है। सारे शरीर की नसें भी तीव्रता से काम करने लगती हैं, रक्त के साथ मिलते ही उत्तेजना बढ़ती है, मस्तिष्क में भी उत्तेजना होती है। जिससे सीधे-सादे दिखाई देने वाले व्यक्ति में भी मार-पीट, तोड़-फोड़, उखाड़-पछाड़ का तूफान-सा आ जाता है । यही कारण है कि मद्य से सोचनेसमझने की शक्ति चली जाती है । एक पाश्चात्य विद्वान् कहता है 'When drink enters, wisdom departs.' -जब मद्य का प्रवेश होता है, तब सोचने-समझने की शक्ति चली जाती है। कुछ वर्षों पहले समाचारपत्र में पढ़ा था-एक व्यक्ति शराब के नशे में चूर था। उसकी पत्नी ने देगची में पानी डालकर चूल्हे पर चढ़ा दी। चूल्हे में आग सुलगाई और कुएँ से पानी भरने के लिए चल दी। जाते समय उसने अपने पति से कहा- "इस पानी में अच्छा उबाल आ जाए तो आप उसमें एक कटोरी दाल डाल देना, मैं कुएँ से पानी भरने जा रही हूँ।" पति मद्य के नशे में चूर था । वह चूल्हे के पास बैठा रहा । कुछ समय बाद उसे पेशाब की हाजत हुई, वह पास वाली गटर में पेशाब करने गया। पेशाब के बाद उसने समझा कि पानी में उबाल आ गया है। अतः उसी पर कटोरी भरकर दाल डाल दी। थोड़ी देर बाद जब पत्नी आई और चूल्हे पर रखी हई तपेली के उबलते पानी में दाल डाली हुई न देखकर उसने पतिदेव से पूछा तो ज्ञात हुआ कि उन्होंने जहाँ मद्य के नशे में पेशाब किया था, वहीं दाल डाल दी है। यह देख पत्नी बहुत क्षुब्ध हुई। उसने पतिदेव को समझाया कि मद्य पीने से किस प्रकार बुद्धि भ्रष्ट और लुप्त हो जाती है ? सचमुच मद्यपान से सोचने-समझने की शक्ति लुप्त हो जाती है। मद्य से स्मरण-शक्ति का ह्रास एक व्यावसायिक फर्म का पार्टनर वकील के पास गया और उसे बताया कि दूसरे पार्टनर ने किसी अन्य फर्म से एक ऐसा सौदा कर लिया है, जिसके फलस्वरूप फर्म को बहुत बड़ी हानि हो जाएगी। इस पर उसने आश्चर्य व्यक्त किया। उसने वकील से यह भी कहा कि 'उसका पार्टनर किसी भी प्रकार का सौदा करने तथा हस्ताक्षर करने से स्पष्ट इन्कार करता है, जबकि हस्ताक्षर उसी के हैं।' शुभचिन्तक वकील दूसरे पार्टनर को डॉक्टर के पास जाँच के लिए ले गया। डॉक्टर ने उससे हस्ताक्षर होने के समय, स्थान तथा अन्य परिस्थितियों के बारे में बारीकी से पूछताछ की तो पता चला कि मित्रों और सहयोगियों के आग्रह पर वह कभी-कभी अधिक मद्यपान भी कर लेता था । उस दिन भी शराब का दौर चला और वह अधिक पी गया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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