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८७. मद्य में आसक्ति से यश का नाश
धर्मप्रेमी बन्धुओ !
आज मैं नैतिक जीवन के लिए घातक तृतीय व्यसन के विषय में प्रकाश डालगा। तीसरा व्यसन है-मद्यपान । मद्यपान नैतिक जीवन के लिए घुन है। इसका त्याग नैतिक जीवन-निर्माण के लिए अनिवार्य है। अतः महर्षि गौतम ने निषेधात्मक स्वर में मद्यपान का दुष्परिणाम बताया है । इस जीवनसूत्र का रूप इस प्रकार है
मज्जं पसत्तस्स जसस्स नासो -मद्यासक्त व्यक्ति के यश का नाश हो जाता है।
गौतमकुलक का यह ७३वाँ जीवनसूत्र है। मद्य क्या है ? मद्यपान नैतिक जीवन के लिए अनिष्टकारक क्यों है ? इससे क्या-क्या हानियाँ हैं ? इत्यादि प्रश्नों पर विचार कर लेना आवश्यक है। मद्य क्या है, क्या नहीं ?
किसी भी वस्तु का यथार्थ स्वरूप उसके परिणामों पर से ही भली-भाँति जाना जा सकता है । मद्य का स्वरूप भली-भाँति जानने के लिए उसके परिणामों को जान लेना आवश्यक है। साथ ही मद्यपान से पूर्व इस सन्दर्भ में यह भी जान लेना आवश्यक है कि मद्य कैसे बनता है और क्यों तैयार किया जाता है ? इसके पश्चात् मद्यपान के नतीजों पर भी विचार किया जाना चाहिए कि उसका शरीर, शरीर के अवयवों, मन, इन्द्रियों और विभिन्न अंगोपांगों पर क्या प्रभाव पड़ता है ? साथ ही मद्य पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं नैतिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक जीवन पर क्या प्रभाव डालता है ? इन सब प्रश्नों पर गहराई से जब तक विचार नहीं कर लिया जाता, तब तक मद्य के यथार्थ स्वरूप की झाँकी नहीं मिल सकती। एक विद्वान् ने मद्य की परिभाषा करते हुए कहा है--
'बुद्धि लुम्पति यद्रव्यं, मदकारि तदुच्यते ।' -जो द्रव्य बुद्धि को लुप्त कर देता है, और मादक (नशीला) है, वह मद्य कहलाता है।
इस दृष्टि से मद्य में शराब (वाइन), बीयर, ब्रांडी, ह्विस्की, रम आदि सब तो आते ही हैं, इनके अतिरिक्त अफीम, गांजा, भंग, चरस, बीड़ी-सिगरेट, तम्बाकू आदि नशीले पदार्थ भी मद्य में समाविष्ट हो जाते हैं।
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