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________________ मौस में आसक्ति से दयी को नाश : ११ मांसाहार के प्रति बढ़ते हुए लोक-उत्साह का मनोवैज्ञानिक कारण लोगों में हिसो के प्रति उत्साह तथा दूसरों को कष्ट देने, निर्बलों को सताने में अपना पराक्रम दिखाने की प्रबल इच्छा ही है । गुण्डागर्दी, दुष्टताएँ इसी आतंकवाद के आधार पर पनपती हैं। किसी को उजाड़ने, बर्बाद करने, पीड़ा देने में अपने आपको साहसी, शूरवीर, पराक्रमी, विजेता, प्रगतिशील आदि कहलाने की हवस मांसाहार से ही होती है । परन्तु इस प्रकार प्राणियों का प्राणहरण करके अपने लिए मांसभोजन जुटाने में मनुष्य की आत्मसत्ता व्यथित एवं उद्विग्न ही हो सकती है। स्वाद आदि का बहाना भले ही बनाया जाए, आत्मग्लानि और आत्मप्रताड़ना को इससे शान्त नहीं किया जा सकता । मनुष्यजाति का कल्याण इसी में है कि दया आदि मानवता का विनाश करके आतंकवाद फैलाने वाले मांसाहार का अविलम्ब त्याग करें। महर्षि गौतम ने इसीलिए चेतावनी देकर इसके त्याग का संकेत किया है-- ___ 'मंसं पसत्तस्स दयाइ नासो।' मांस में आसक्ति से दया का विनाश हो जाता है । 000 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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