SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मांस में आसक्ति से दया का नाश : ६७ पशुमांसभोजी एक दिन मानवमांसभोजी भी हो सकते हैं मांसाहार अमानवीय भोजन है । उसके खाने से पाशविक विकार पैदा होते हैं । यदि मांस-भोजन की प्रथा संसार से न उठी और इसी प्रकार बढ़ती रही तो एक दिन वह भी आ सकता है, जब पशुओं की कमी अथवा अभाव में तुमसे सबल मनुष्य तुमको भी इसी प्रकार काटकर खा जाएँ और वास्तव में कोई पता नहीं, कि विविध पशुओं को खाता हुआ आज जिस प्रकार मनुष्य भेड़, बकरी, गाय, भैंस, सूअर आदि से बढ़ता-बढ़ता मछली, झींगा, झींगुर, मुर्गा, कबूतर तथा अनेक दूरस्थ विदेशों में तो चूहा, साँप, छिपकली, मेंढक तक आ गया है, वैसे ही वह मनुष्य तक आ जाए और तब मांस को तलब बढ़ने, अन्न का अभाव होने, कोई आड़ा वक्त आ जाने पर मनुष्य अपने बच्चों को भी मारकर खाने लगे। जिस प्रकार काम की पाशविक वासना बढ़ती-बढ़ती मर्यादा का उल्लंघन करते. बहन-भतीजी को भी लांघ जाती है, उसी प्रकार मांसभोजन की पैशाचिक वृत्ति बढ़कर बच्चों तक पहुंच सकती है। यदि मनुष्य ने मांसाहार की लत को नहीं रोका तो उसकी निष्ठुरता इस सीमा तक भी बढ़ सकती है । दार्शनिक पैथागोरस ने एक बार कहा था-"ऐ मौत के फन्दे में उलझे हुए इन्सान ! अपनी तश्तरियों को मांस से सजाने के लिए जीवों की हत्या करना छोड़ दे । जो भोले-भाले पशुओं की गर्दन पर छुरी चलवाता है, उनका करुण क्रन्दन सुनता है, जो अपने हाथों पाले हुए पशु-पक्षियों की हत्या करके अपनी मौज मनाता है, उसे अत्यन्त तुच्छ स्तर का व्यक्ति समझना चाहिए। जो पशुओं का मांस खा सकता है, वह किसी दिन मनुष्यों का भी खून पी सकता है।" ___ मांसाहार : कोमल भावनाओं का नाशक मनुष्य जाति की व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक और समग्र राष्ट्रों की सुखशान्ति एवं सुरक्षा पारस्परिक दया, करुणा और उदारता के सहारे जीवित और व्यवस्थित है । भले ही जानवरों पर सही, जब मनुष्य मांसाहार के लिए वध और उत्पीड़न की बर्बरता बरतेगा तो उसकी भावनाओं में कठोरता, अनुदारता एवं नृशंसता के बीज पड़ेंगे और वे फलते-फूलते हुए पशु-पक्षियों तक ही सीमित न रहकर मनुष्यों पर भी कहर बरसाने लगेंगे। मानवीय भावना का लोप ही आज पश्चिम को दुःखग्रस्त, पीड़ित और अशान्तिग्रस्त कर रहा है । वहाँ की तरह यहाँ भी हत्या, दंगा, लूटमार, आगजनी, तोड़फोड़, व्यभिचार, दुष्टता, बेईमानी, छल-कपट, हत्या आदि का तांता बढ़ रहा है, संभव है, परिस्थितियों का दोष हो, परन्तु मांसाहार का पाप भी इसमें कम उत्तरदायी नहीं है। मांसाहार मनुष्य की कोमल भावनाओं को नष्ट करता और समाज-जीवन को दुःखान्त बनाता चला जा रहा है । मांस के लिए जीवात्माओं के वध का अपराध मनुष्य जाति को दण्ड दिये बिना छोड़ दे, ऐसा सम्भव नहीं। मांसभोजियों के कारण मनुष्यों का एक बड़ा वर्ग पशुहत्या से लेकर मांस Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy