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________________ ६६ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ भी आततायी और आक्रान्ता हुए हैं, उन्होंने वीर से टक्कर लेने की अपेक्षा निर्बलों को ही अधिक सताया है । जो वीर है, वह वीरगति प्राप्त करता है, जबकि बर्बर कुत्ते की मौत मारा जाता है । मांसाहार के समर्थन में किसी बर्बर आक्रान्ता को बहादुर कहना मानवता के उदात्तगुण - वीरता का अपमान करना है । जंगल के शेर, चीते, भेड़िये, भालू एवं लक्कडबग्घे आदि मांसाहार करते हैं, ये आक्रान्ता और बर्बर होते हैं । इन्हें देखकर कई लोग कह देते हैं, शक्तिशाली होने के लिए मांसाहार आवश्यक है। शेर, चीते आदि मांसाहारी होने के साथ शक्तिशाली होते हैं, पर उनकी शक्ति आक्रामक एवं बर्बर होती है, वह किसी निर्बल की रक्षा या सहायता के काम नहीं आती । यही कारण है कि शेर, चीता आदि आक्रान्ता एवं बर्बर जीवों में दुष्टता और कायरता भी होती है, संशयशीलता एवं मानसिक अशान्ति सदा बनी रहती है। शेर दिनभर भयग्रस्त रहता है । चीते और भेड़िये खूंख्वार होने के साथ-साथ सदा इसी प्रयत्न में रहते हैं कि कहाँ छिपे रहें, जिससे कोई उन्हें देख न ले, मार न डाले । साँप, चलते हुए इतना भयग्रस्त होता है कि सामान्य -सी खुटक से वह बुरी तरह घबड़ा जाता है । मनुष्य भी यदि मांसाहार करता है तो उसमें स्वभावतः भयग्रस्तता, संशयशीलता, अविश्वास दुष्टता, आक्रमण की भावना निर्बल को सताने की वृत्ति रहती है जो उसे सदैव मानवीय गुणों से दूर रखती है । इसके साथ ही मांसाहारियों में दुर्बुद्धि. स्थूलता, असहिष्णुता, आलस्य, कोष्ठबद्धता क्रोधी स्वभाव, अमानुषिकता आदि दुर्गुण भी होते हैं । मानव अन्तःकरण के अनुकुल गुण शाकाहार से ही उपलब्ध हो सकते हैं । बैल और घोड़े शाकाहारी जीव हैं उनमें बोझा ढोने और दौड़ने की शक्ति सर्वाधिक होती है । घोड़े की शक्ति तो मशीन से भी बढ़कर मानी जाती है । शक्ति के साथ-साथ मानवीय गुणों का महत्त्व अधिक है । गुणों पर ही व्यक्ति, परिवार, समाज, और विश्व की सुख-शान्ति निर्भर है । जहाँ मांसाहार दुर्गुणों का पोषण करता है, वहाँ शाकाहार सद्गुणों की रक्षा और विकास । इसलिए मांसाहार मानवता के लिए अभिशाप है, वहाँ शाकाहार मानवता की वृद्धि करने वाला पुण्य है । ऊँट शाकाहारी जीव है. इसलिए वह सर्वाधिक सहिष्णु होता है, जबकि सांप मांसाहारी है, इसलिए क्रोधी, आलसी, असहिष्णु और चिड़चिड़े स्वभाव का होता है, जबकि फुदकती रहने वाली क्रियाशील गिलहरी शाकाहारी होती है । हिरण के शरीर जैसी लचक, खरगोश जैसे जीव की उछाल और मेंढे की-सी प्रतिद्वन्द्विता की शक्ति मांसाहारी जीवों में नहीं होती। इससे यह सिद्ध होता है कि मानवता की रक्षा करने वाले सभी गुण शाकाहार में है, मांसाहार में नहीं । की लत लग जाती है और ये दोनों चीजें जाता है । उसमें निराशा और विषाद के भाव घर कर जाते हैं । इसलिए मांसाहारी तनिक-सी भी प्रतिकूलता सहन करने में सर्वथा असमर्थ हो जाता है, शीघ्र ही आत्महत्या के लिए उतारु हो जाता है । मांसाहार से मनुष्य को शराब पीने मिलने से मनुष्य का स्नायुमण्डल निर्बल पड़ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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