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________________ ६४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ मनुष्य जिन पशुओं का मांस खाता है, उसके पाशविक दोष भी उसमें आ जाते हैं। वह काम-क्रोध की वृद्धि हो जाने के कारण बहुत हद तक मानवीय मर्यादाओं का उल्लंघन कर बैठता है । पशुओं की-सी जड़ता और दुर्बद्धिता उसमें भी आ जाती है । मनुष्य जैसा भी भोजन करता है, उसके विचार भी वैसे ही बनते हैं । मांस, मछली और अंडों जैसा तामसिक आहार करके मन के विचारों को सात्त्विक, दयापूर्ण एवं संयमी रखना असंभव है। मांसाहार से मनुष्य का मन क्रूर, जनूनी, उन्मत्त, कामोत्तेजना से व्याप्त, हत्या, डाका, लूट, चोरी आदि करने में साहसी, क्रोधी, कामी और मोही बन जाता है । इससे मन में विक्षोभ पैदा होता है, मनोवृत्तियाँ चंचल हो जाती हैं, मनोयोग का ह्रास हो जाता है । वह कोई भी कार्य मनोयोगपूर्वक नहीं, कर सकता, उसमें धैर्य की कमी हो जाती है । जरा-जरा-सी बात पर लड़ना, मारपीट कर बठना, हत्या कर देना उसका स्वभाव बन जाता है । हत्या, चोरी, डकैती, बलात्कार आदि के अपराधी प्रायः मांसभोजी ही होते हैं । एक नगण्य - सा कारण उपस्थित होते ही वह बारूद की तरह भड़क उठता है । उसकी निर्बल तामसिक बुद्धि उसे कोई भी अपराध करने से रोक नहीं पाती । आज विश्व पर दृष्टि डालकर देखा जाए तो युद्ध भड़काने और बात-बात में युद्ध की धमकी देने वाले राष्ट्रों में अधिकतर मांसभोजी राष्ट्र हैं । यदि संसार से मांसाहार का बहिष्कार कर दिया जाए तो युद्ध की प्रवृत्तियाँ ७५ प्रतिशत कम हो सकती हैं । विविध डॉक्टरों का मत है कि मांसाहार से बौद्धिक शक्तियाँ मन्द हो जाती हैं। अंडे, मांस आदि गर्म एवं उत्तेजनात्मक पदार्थ हैं, इनके सेवन से काम और क्रोध दोनों की उत्तेजना बढ़ जाती है । इस सब दृष्टियों से मांसाहार जैसा तामसिक भोजन मनुष्य के लिए उपयुक्त नहीं है । मांसाहार से शक्ति : भयंकर भ्रम मांसाहार के पक्षपाती कहते हैं मांसाहार चाहे तामसिक भोजन हो, उससे शक्ति आती है, परन्तु यह बात बिलकुल गलत है । शरीर का केवल मोटा हो जाना ही शक्ति का लक्षण नहीं है । वातरोग के कारण जैसे शरीर फूल जाता है, वैसे ही मांसाहार से कदाचित् शरीर फूल जाए, मगर उसमें स्फूर्ति, मजबूती, लचीलापन, ताकत, दीर्घायुष्कता, स्वस्थता, बहादुरी एवं वीरता उतनी नहीं होती, जितनी शाकाहारी के शरीर में पाई जाती है । इस कारण शाकाहारी ही शरीर में हृष्ट-पुष्ट एवं बलिष्ठ होते हैं । शाकाहार से शरीर की मांसपेशियाँ स्वस्थ एवं सशक्त बनती हैं जबकि मांसाहारी का शरीर अस्वस्थ होता है, मांसपेशियाँ भी अशक्त होती हैं । कुछ ही महीनों पूर्व कानपुर के दो अखाड़ों के पहलवानों में कुश्तियां हुईं, जिसमें एक अखाड़े के पहलवान अधिकांश मुसलमान थे और वे मांसाहारी थे तथा दूसरे अखाड़े के सभी हिन्दू थे, जो शुद्ध दूध, फल, घी और मेवों का इस्तेमाल करते थे । इस प्रतियोगिता में उस समय लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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