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________________ ८८ : आनन्द प्रवचन : भाग १२ यद्यपि यह सब लकीर पीटने लिए पढ़ा-पढ़ाया जाता था। परन्तु बालक 'रिचे ने इसे गम्भीर रूप में लिया । वह कई दिन तक लगातार यही सोचता रहाक्या हम सच्चे ईसाई नहीं हैं, क्या हम यीशू के उपदेशों को कहते-सुनते भर हैं, उन पर अमल क्यों नहीं करते? बालक रिचे ने कई दिन तक अपने घर में मांस के लिए छोटे जानवरों और पक्षियों का वध होते देखा तो उसके हृदय में भूचाल मच गया-उफ ! कितना कष्ट ! कितना उत्पीड़न ! उसकी आँखों में उस क्रूर दृश्य को देखकर आँसू भर आए। कोमल-हृदय बालक ने एक दिन इस दृश्य को देख कर तड़फते हुए प्राणी के साथ आत्मीयता जोड़ी तो उसे लगा-मानो उसी को काटा जा रहा हो । बेचारा बालक घर से बाहर चला गया और सुबक-सुबक कर घंटों रोता रहा। तब तो वह इतना छोटा था कि अपने मनोभाव घर के लोगों के सामने ठीक से प्रकट नहीं कर कर सकता था, लेकिन अब वह दस वर्ष का हो चला था। अपनी संवेदनाओं को प्रकट करने लायक शब्द उसने हस्तगत कर लिये थे। दूसरे ही दिन उसने धर्मशिक्षक पादरी के सामने अपनी वेदना रखी-"फादर ! क्या मांस के लिए पशु-पक्षियों की हत्या करना ईसाईधर्म और ईसामसीह की शिक्षा के अनुरूप है ?" पादरी स्वयं मांस खाते थे । वहाँ घर-घर में लोग मांस खाते थे। इसलिये वे स्पष्ट समाधान न कर सके । अगर-मगर के साथ दया और मांसाहार दोनों के समर्थन की बात कहने लगे किन्तु आत्मानुभव से शिक्षित बालक रिचे के गले सुशिक्षित पादरी की लम्बी-चौड़ी व्याख्या तनिक भी न उतरी। उसे लगा कि वह बहकाया जा रहा है। यदि दया धर्म का अंग है तो धर्मात्मा लोग हर प्राणी के प्रति उसका प्रयोग क्यों नहीं करते ? यदि ईसाईधर्म की यही शिक्षा है तो उसे व्यवहार में क्यों नहीं उतारा जाता? बालक रिचे ने निश्चय किया कि वह सच्चा ईसाई बनेगा, ईसामसीह का सच्चा अनुयायी। उसने मांसाहार को ईसाईधर्म-प्ररूपित प्राणि-दया के तथा मानवीय गुणों के विरुद्ध जानकर मांस न खाने का निश्चय किया। जब उसके सामने भोजन आया तो उसने मांस की कटोरी दूर हटा दी। कारण पूछा गया तो उसने स्पष्ट कहा-"यदि हम धर्म पर आस्था रखते हैं तो हमें उसकी शिक्षाओं को भी व्यवहार में लाना चाहिए। हत्यारे और रक्त-पिपासु लोग धर्मात्मा नहीं हो सकते।' परिवार के लोगों ने मांस न खाने से शरीर कमजोर हो जाने की युक्ति प्रस्तुत की तो उसने पूछा-"क्या शारीरिक कमजोरी आत्मिक पतन से अधिक घृणित है ?" घर वालों का समझाना-बुझाना बेकार चला गया । रिचे ने मांस खाना छोड़ा सो छोड़ ही दिया। जो लोग ईसाईधर्म और ईसामसीह की दया एवं शिक्षा की बातें करते हैं, उनसे रिचे रूखे कंठ और डबडबाई आँखों से यही पूछता-"क्या पेट को बूचड़खाना बनाये रखने वाले लोग धर्म और ईसामसीह की बढ़-चढ़कर प्रशंसा करने के अधि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004015
Book TitleAnand Pravachan Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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