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८४ : आनन्द प्रवचन : भाग १२
कारण है कि तत्त्वदर्शी ऋषि-मुनियों ने आहार की शुद्धता, स्वच्छता, उपयुक्तता, तथा सात्त्विकता पर बहुत जोर दिया है।
यदि मानव के जीवन-निर्माण में, उसके आत्मविकास और धर्मपालन में आहार का कोई विशेष प्रभाव न होता तो मनीषीजन उसकी खोज तथा गुण-अवगुण, उपयुक्तता-अनुपयुक्तता आदि पर कोई चिन्तन न करते । वे अनावश्यक बातों में बुद्धि को क्यों उलझाते और क्यों आयुर्वेद के विद्वान् रचयिता पथ्यापथ्य पर इतना विवेचन करते।
___ इन सब दृष्टियों से शाकाहार ही मनुष्य के लिए प्राकृतिक और उपयुक्त भोजन सिद्ध होता है, मांसाहार नहीं। शाकाहार ही क्यों, मांसाहार क्यों नहीं ?
किसी भी दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाए तो मांसाहार का औचित्य सिद्ध नहीं होता और न ही यह विश्वास किया जा सकता है कि मांस मनुष्य का स्वाभाविक आहार है। मांसाहार : मनुष्य को आत्मिक प्रकृति के विपरीत
मानवीय अन्तरात्मा दया, करुणा, क्षमा, सहानुभूति, सौहार्द, संवेदना आदि तत्त्वों से बनी हुई है। वस्तुतः देखा जाए तो दया के ही ये अनेक रूप हैं। उसकी ही ये शाखा-प्रशाखाएँ हैं। जिस मनुष्य में दया नहीं वह मनुष्यता के पूर्ण लक्षणों से युक्त नहीं कहा जा सकता। मनुष्य का यह सहज स्वाभाविक गुण है कि किसी कष्टपीड़ित को देखकर उसमें सहज करुणा उत्पन्न होती है । दूसरे के दुःख में दुःखी और दूसरों के सुख में सुखी होना, उसकी आन्तरिक विशेषता है । इसे वह हटा या मिटा नहीं सकता। मांसाहार से निरीह प्राणियों का अकारण विनाश होता है और उसके साधन जुटाने में मनुष्य की सर्वोपरि गरिमा-संवेदना और सहानुभूति को भारी आघात लगता है । अगर किसी मांसाहारी मानव को भी ४ दिन तक लगातार कसाईखाने में रखा जाए तो उसमें मांसाहार के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाएगी । वहाँ जिस निर्दयता के साथ पशुओं को काटा जाता है, जैसे उनकी चमड़ी को गर्म-गर्म पानी से उबालकर फुलाया जाता है, पीटा जाता है। पशुओं की जैसे करुण चीखें निकलती हैं, उनकी आँखें जिस करुणता से मानव से याचना करती हैं, उन सब प्रक्रियाओं को देखकर थोड़ी बहुत भी मनुष्यता होगी, दया होगी तो उसे मांसाहार से कतई घृणा हो जाएगी। अधिकांश मांसाहारी व्यक्तियों ने प्राणिवध को देखा नहीं है, प्राणियों को मांस निकालते समय जैसी भयंकर यातनाएँ दी जाती हैं, उन पर जो आत्याचार होते हैं, उन्हें नजरों से नहीं देखा, बहती हुई रक्त की नदियाँ नहीं देखीं, इतना घणात्मक अनुभव कर लेने के बाद तो उनकी आँखें स्वतः खुल जाएँगीं। उनका करुणाशील अन्तःकरण स्वयं कह उठेगा-"ओह, मांसाहार करना राक्षसों का काम है,
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