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________________ धर्मकार्य से बढ़कर कोई कार्य नहीं - २ वह व्यक्ति कुछ आश्वस्त और उत्साहित होकर ठंडे लहजे में बोला - "यही तो अर्ज करना है, हजुर ! उसे कहकर ही तो मन का भार हलका करना है, खास तौर से आप ही को सुनाना चाहता हूँ ।" थानेदार ने दिलचस्पी लेते हुए कहा – “मुझसे ही कहनी हैं ? अच्छा कहो, क्या कहना है तुम्हें ? क्या किसी की शिकायत है, जिसे स्पष्ट करने को, तुम यहाँ दो घंटे से बैठे हो ? वरना यहाँ से तो लोग दूर-दूर भागते हैं । " आगन्तुक – “एक टाइम था, जब मैं भी थाने से ऐसे ही दूर भागता था, जैसे अपराधी, फरार या डकैत भागा करते हैं ?” थानेदार - " तो क्या तुमने भी अपराध किया था, कभी ?" आगन्तुक - " जी हाँ, मैंने अपराध किया था ।" ७७ थानेदार—“तो जेलखाने की मार भी पड़ी होगी । हंटरों के निशान भी कमर पर उभरे होंगे ? एक बार जेलखाने जाकर कौन भूल सकता है ?" आगन्तुक — “ अपराध तो किया था, मगर जेलखाने नहीं गये । कानून की निगाह से बचे रहे ।” थानेदार — “वाह, खूब चालाक निकले तुम ! सरकार की आँखों में धूल झौंक तुमने ।” आगन्तुक - " पुलिस को तो चकमा दिया, पर खुद को धोखा न दे सका उसी का पछतावा है । उसी की माफी माँगने आया हूँ, सरकार ।" थानेदार - ' ' अभियुक्त को पश्चात्ताप ! हमने तो कभी अभियुक्तों को अपनी करनी पर पछताते नहीं देखा । आज पहली बार तुमसे ऐसा सुन रहे हैं । स्पष्ट बताओ कैसे क्या अपराध हुआ और तुम क्या चाहते हो ?" आगन्तुक - " जी ! मैं अपने बुरे कार्य पर लज्जित हूँ और प्रायश्चित्तस्वरूप आज अपना अपराध आपके सामने कबूल करने आया हूँ । जब से मैने डाकेजनी में भाग लिया था, तब से ही मेरी आत्मा अन्दर ही अन्दर पापकर्म के लिए कचोटती रही है । मैं अपराध को दबा नहीं पा रहा हूँ । अन्दर से कोई आवाज आरही है कि अपने पाप को कह दे, सबके सामने कबूल कर ले, उसकी जो भी सजा मिले, भुगत ले तो तेरे मन का भार हलका हो जाएगा। हजूर ! मुझे माफी दी जाये ।" थानेदार - ''तुम कौन हो ? जरा तफसील दो कि क्या - क्या और कैसे हुआ ?" आगन्तुक रोते हुए बोला - " जी ! मैं जुम्मन नामक फरार अभियुक्त हूँ । मेरा सम्बन्ध नौ मास पूर्व कानपुर जिले के ग्राम बारा ( ककवन थाना क्ष ेत्र) निवासी मोहन लाल नामक ग्रामीण के घर में हुई सशस्त्र डकैती से है । मेरे नेतृत्व में वह डकैती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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