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आनन्द प्रवचन : भाग ११
श्री चन्दनमुनिजी के दर्शनार्थ उसे साथ ले गये। वहाँ एक ही उपदेश में नारायणदास बदल गया। उसने मुनिश्री से शराब, मांस, रक्त आदि का त्याग कर लिया। उसने सभा में अपनी सारी रामकहानी सुनाई और अन्य सिन्धी भाई बहनों को भी इन दुर्व्यसनों के त्याग की प्रेरणा दी।
जो नारायणदास एक दिन स्वयं इन दुर्व्यसनों का अगुआ था, वह आज अपने सिन्धी भाइयों-बहनों का दुर्व्यसन त्याग करवाने में अग्रणी बन गया। उसका जीवन पवित्रता के पथ पर-धर्ममार्ग पर चल पड़ा। नारायणदास को दुर्व्यसनों के सेवन से कोई सुख नहीं था, वह बेचैन रहता था, परन्तु अब उसके जीवन में सुख-शान्ति थी। अगर पापमय जीवन में सुखशान्ति या अमन-चैन होती तो जैन, वैदिक, बौद्ध आदि धर्मशास्त्रों से जो चोर, डाकू, हत्यारे, पापी आदि के जीवन-परिवर्तन की रोमांचक घटनाएँ मिलती हैं, वे अपने कुत्सित जीवन को क्यों छोड़ते और क्यों पापमय जीवन छोड़कर धर्मकृत्य करके धर्ममय जीवन जीते ? नारायणदास की तरह हजारों व्यक्ति ऐसे हैं, जो पापमय जीवन जीते-जीते ऊब गये हैं, उन्हें उक्त जीवन में कोई तृप्ति, सन्तोष या आनन्द नहीं ।
वर्षों पहले समाचारपत्र में एक सच्ची घटना पढ़ी थी-एक व्यक्ति ने सुबह सुबह स्थानीय थानेदार साहब के यहाँ पहुँचकर आवाज दी थानेदार साहब !
थानेदार साहब का दुमंजिला मकान था। थानेदार साहब अभी सो रहे थे । बारबार आवाजें आने से उनकी पत्नी ने उन्हें जगाया और बाहर बैठे आदमी के आने की सूचना दी। थानेदार ने कहा-“कान्स्टेबल से पुछ्वाना—क्या चाहता है ?"
पत्नी-“अजी ! वह दो बार पूछ गया है। तब तक आप होये रहे। उसे बाहर बैठे-बैठे एक घंटे से ऊपर होगया । अधीर हो, आवाजें देने लगा है । तनिक देखो न, वह किसी मुसीबत का मारा मालूम होता है। चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रहीं हैं, आवाज में चिन्ता है, खिन्न दीखता है।" थानेदार साहब खिड़की से नीचे झांककर बोले"अच्छा बैठो, मैं नीचे आ रहा हूँ।" वह आदमी कुछ सन्तुष्ट-सा चबूतरे पर बैठ गया। कान्स्टेबल ने यह कहकर जब उसे अन्दर नहीं जाने दिया कि रिपोर्ट लिखानी हो तो मुंशीजी को लिखा दो, तब भी वह बोला- "थानेदार साहब से ही एक काम है।" ___ डेढ़ घंटे और प्रतीक्षा करने के बाद थानेदार साहब की नींद खुली । बैठक का दरवाजा खुला । कान्स्टेबल आगन्तुक को अन्दर ले गया। थानेदार तने हुए बैठे थे, उन्होंने कड़कती हुई आवाज में कहा-"क्यों क्या बात है ? तुमने मुंशीजी को रिपोर्ट क्यों नहीं लिखाई ? मुझे व्यर्थ क्यों परेशान किया ?".
वह विनय के स्वर में बोला-"माफ करें, सरकार ! गलती हो गई । कुछ ऐसी गुप्त बातें हैं, जो सिर्फ हजूर से ही अर्ज करनी थी।"
थानेदार-'मुझसे ऐसी कौन-सी पोशीदा बातें कहनी हैं ? यहाँ चोर, डाकू, बदमाश आवारा ही आते हैं, जो हर बात छिपाते रहते हैं, तुम कौन हो, जो आज निर्भय होकर मुझसे अपनी गुप्त बातें कहने आये हो ?"
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