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धर्मकार्य से बढ़कर कोई कार्य नहीं–२
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जो शुद्ध धर्म भावना (साम्प्रदायिकता, सम्प्रदायवृद्धि की भावना नहीं) से ओतप्रोत हों। जो धर्मक्रियाएं यन्त्रवत् की जाती हों, जिन्हें तोता-रटन की तरह रट-रटाकर धड़ाधड़ बोलकर या मशीन की तरह क्रियाएं करके पूरी की जाती हों, जिनका न तो अर्थ समझा जाता हो, न ही उसका प्रयोजन, वे धर्मक्रियाएं धर्मकार्य की कोटि में कैसे आ सकती हैं ?
जो क्रियाएँ सामाजिक रीति-रिवाज या रूढ़ि-रस्म के तौर पर की जाती हों, जैसे वैवाहिक भोज, मृतभोज आदि वे धर्मकार्य की कोटि में नहीं आतीं।
विवेकवान् धर्मनिष्ठ पुरुष धर्मकार्य के अतिरिक्त अर्थ-काम सम्बन्धी कार्यों को गौण मानता है। धर्मज्ञ व्यक्ति एक ओर अर्थकार्य या कर्मकार्य हो, उसे गौण समझकर धर्मकार्य को पहले करता है । धर्मकार्य को प्राथमिकता देने के पीछे कारण यह है कि अर्थकार्य, कर्मकर्य या सांसारिक रीतिरिवाज आदि से सम्बन्धित स्वार्थपोषक कार्य तो अनन्तकाल से होते आ रहे हैं, परम्परागत संस्कारवश मनुष्य उन्हें करता आया है, उनके करने का अवसर फिर भी मिल सकता है, लेकिन धर्मकार्य को करने का अवसर बहुत ही मुश्किल से मिलता है । जब कभी धर्मकार्य से धर्मोपार्जन करने का अवसर आता है, तब पूर्वकुसंस्कारवश मनुष्य या तो उसके प्रति अरुचि, अनुत्साह या अश्रद्धा प्रदर्शित करता है, या फिर वह उसे टाल-मटूल करने का प्रयत्न करता है, शरीर की रुग्णता, असामर्थ्य, समय का अभाव आदि का बहाना बनाता है । इस प्रकार धर्मकार्य का अवसर आता है तो भी मनुष्य नहीं कर पाता। इसलिए कविश्री धर्म-प्रेरणा देते हुए कह रहे हैंधर्म की पूंजी कमाले, कमाले जीवा; जीवन बन जायेगा ॥ध्रुव॥ बागे जहाँ में अपना जीवन-पुष्प सुगन्ध बनाले, बनाले जी. जी. ब. ॥१॥ अखिल विश्व के दलित वर्ग की सेवा (का) भार उठाले २, जी. जी. ब.॥२॥ मोहपाश के दृढ़ बन्धन से अपना पिण्ड छुड़ाले २, जी. जी. ब. ॥३॥ राग-द्वेष का जाल बिछा है, दूर से राह बचाले २, जी. जी. ब. ॥४॥
कितनी सुन्दर प्रेरणा है कवि की ! पंचतंत्रकार ने भी धर्मविहीन दिवस बितानेवाले को मृतवत् घोषित किया है
यस्य धर्मविहीनानि दिनान्यायान्ति यान्ति च ।
स लोहकार भस्त्रैव, श्वसनपि न जीवति ॥' जिस व्यक्ति के दिन धर्मकार्य के बिना व्यतीत होते हैं और आते-जाते हैं, वह लोहार की धोंकनी की तरह श्वास लेता हुआ भी जीवित नहीं है।
उत्तराध्ययनसूत्र में धर्मकार्य करते हुए रात्रि व्यतीत करने को जीवन की सफलता बतायी गई है, इसके विपरीत जो व्यक्ति अधर्मकार्य में अपनी रात्रि बिताता है, उसका जीवन असफल बताया गया है
१. पंचतन्त्र ३/९७
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