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आनन्द प्रवचन : भाग ११
धर्म में स्थिर करने के लिए बिना किसी तुच्छ स्वार्थ के दी गई सहायता भी धर्मपोषक या धर्मवृद्धिकारक है । अगर धार्मिक व्यक्ति अर्थसंकट में हो तथा विवश होकर अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए धर्मान्तर का मार्ग अपनाने को तत्पर हो, अथवा धर्ममार्ग को तिलांजलि देकर चोरी, डकैती अथवा अन्य अनैतिक धंधा अपनाने को तैयार हो, ऐसी स्थिति में उसे अहिंसादि शुद्ध धर्म में स्थिर करने के लिए जो भी सहायता निःस्वार्थभाव से दी जाती है, वह धर्मकार्य है । एक उदाहरण लीजिए—
मारवाड़ में उस वर्ष भयंकर दुष्काल के कारण जालौर (मारवाड़) का एक युवक – ऊदा मेहता गुजरात के एक प्रसिद्ध व्यावसायिक नगर में पहुँच गया । यौवन की मादकता गरीबी और फटेहाल दशा से फीकी पड़ गई थी । उसकी आस्था जैनधर्म
थी । पर्युषण पर्व के दिन थे । अतः वह स्थानीय जैन उपाश्रय के बाहर दरवाजे पर बैठ गया ताकि आने-जाने वाले जैन भाई-बहन मेरी हालत देखकर तात्कालिक सहायता कर दें तो मैं कुछ दिनों में कोई स्वतंत्र व्यवसाय करके अपने पैरों पर खड़ा हो सकूँ । परन्तु उसे बैठे-बैठे तीन घंटे होगए, इसी बीच कई बहन-भाई आये गये लेकिन किसी ने उससे नहीं पूछा कि तू कौन है ? कहाँ से आया है ? क्या चाहता है ? उसके मन में रह-रहकर विचार आ रहे थे, अगर मुझे कोई भी नहीं पूछेगा तो फिर इस धर्म को छोड़ना पड़ेगा, नीति या अनीति किसी भी तरीके से पेट तो भरना ही होगा । इसी दौरान एक बहन जिसका नाम लच्छी (लक्ष्मी) बहन था, उधर से निकली । उसने उसे खिन्न और उदास देख पूछा - " भाई तुम कौन हो ? यहाँ खिन्न और उदास क्यों बैठे हो ?” 'भाई' शब्द सुनते ही ऊदा मेहता के हर्षाश्रु उमड़ पड़े । वह बोला" बहन ! तुम्हीं एक बहन ऐसी निकली, जिसने 'भाई' कहकर मुझ से मेरी व्यथा पूछी। मैं मारवाड़ का जैन हूँ। वहाँ भयंकर दुष्काल के कारण मैं किसी धंधे की तलाश में गुजरात आया हूँ । मगर यहाँ आने पर निराश हो गया। दो दिन से भूखा हूँ । सोचा था — उपाश्रय के द्वार पर बैठें, वहाँ तो कोई न कोई साधर्मी बहन या भाई मेरी दशा पूछकर शायद सहायता के लिए तैयार हो जाय । मैं तो निराश होकर लौट रहा था, लेकिन इसी बीच तुमने मुझे पूछ लिया । "
लच्छी बहन उसे आश्वासन देकर अपने घर ले गई, भोजन कराया, पहनने के लिए वस्त्र दिये, रहने के लिये मकान दिया और व्यापार के लिए अर्थराशि दी । ऊदा मेहता, जिसका मन एक दिन धर्म से विचलित हो गया था, लच्छी बहन की सहायता से पुन: धर्म में सुस्थिर हो गया । उसे सद्धर्म पर दृढ़ विश्वास हो गया । आगे चलकर यही ऊदा मेहता अपनी प्रतिभाशक्ति से गुजरात के चौलुक्य सम्राट के शासनकाल में महामंत्री बना ।
क्या लच्छी बहन के द्वारा बिना किसी पूर्व परिचय के एक अज्ञात व्यक्ति को स्वार्थभावना से रहित होकर धर्म में स्थिर करने हेतु सब प्रकार का सहयोग प्रदान करना धर्मकार्य नहीं है ?
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