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धर्मकार्य से बढ़कर कोई कार्य नहीं-१
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कहना न होगा कि स्वामीजी के इस सेवाकार्य के फलस्वरूप महामारी का प्रकोप भी शान्त हो गया। किन्तु यही सेवा कोई विज्ञापन, यश-कीर्ति, प्रसिद्धि आदि की दृष्टि से या रो-झींककर सरकार के दवाब से, या भय से करता है तो वह धर्मकार्य की कोटि में परिगणित नहीं होगी।
कष्ट सहकर करुणाः विशुद्ध धर्मकार्य-कई बार दूसरों को कष्ट में देखकर करुणा करने वाला सहृदय व्यक्ति अपने कष्ट, संकट, आफत या दुःख को भूल जाता है, कभी-कभी तो वह संकटों को चेलेंज भी दे बैठता है, और निर्भीक होकर उनका सामना करते हुए करुणा जैसे विशुद्ध धर्मकार्य को निःस्वार्थभाव से करता है ।
___ बात उस जमाने की है, जब योरोप में दास-प्रथा प्रचलित थी। अफ्रीकी देशों से छोटे-छोटे बालक-बालिकाएं, दास-दासियों के रूप में खरीदे जाते और योरोप में ले जाकर अच्छे दामों में बेच दिये जाते। इस घृणित व्यवसाय में व्यापारियों को जहाँ करोड़ों रुपयों की आय होती, वहां खरीदे गये गुलामों की उतनी ही दुर्गति होती। केवल जीवित रखने भर के लिये अन्न और फटे-पुराने वस्त्र देकर उनसे जितना अधिक काम लेना सम्भव होता, लिया जाता। इन अभागे मानवों की यह करुण दशा देखकर अमेरिकी महिला 'जान ह्विटले' का हृदय करुणा से भर आया। उसने इस अमानवीय कृत्य के प्रति विद्रोह करने का निश्चय किया। जैसे ही सेनेगल से अफ्रीकी लड़कियों का जहाज आया, उस दयालु महिला ने अपनी सारी सम्पत्ति लगाकर पूरा जहाज खरीद लिया। उन लड़के-लड़कियों से दास-दासी का काम कराने की अपेक्षा उन्हें लिखाना-पढ़ाना और दस्तकारी का काम सिखाना प्रारम्भ कर दिया। दास-दासियों के प्रति इस प्रकार का मानवीय व्यवहार देखकर अमेरिकन गोरे चिढ़ गये और वे जॉन हिटले के प्राणों के ग्राहक बन गये। उन्होंने जॉन को ऐसा न करने को कहा तो उस सेवाभाविनी ने उत्तर दिया-''मैं मातृहृदय नारी हूँ। इन मानवों की आन्तरिक पवित्रता को अच्छी तरह जानती हूँ। नारी, फिर वह चाहे किसी भी देश की हो, उत्पीड़ित मानवों को देख नहीं सकती। आप लोग कुछ भी करें, हम नारी और उससे सम्बद्ध बच्चों का तिरस्कार नहीं होने देंगे, बल्कि इनके जीवन की नई दिशा में मोड़ने के लिए कुख्यात तक हो जाएंगे।" गोरों ने उसे तरह-तरह से सताया, पर जॉन ह्विटले अपने पथ से विचलित न हुई । वह लगातार इन लड़के-लड़कियों को शिक्षित करने में लगी रही।
इन्हीं लड़कियों में एक लड़की 'फिलिप हिटले' ने दासप्रथा के विरुद्ध बान्दोलन छेड़ दिया । उसने ऐसे प्रौढ़ और प्रखर विचार दिये कि अमेरिकन लोगों का मर्म हिल गया। दूसरी ओर सारे अफ्रीकी नीग्रो इस अमानवीय कुप्रथा को मिटाने के लिये बलिदान तक देने को तैयार हो गये । अन्त में, जार्ज वाशिंगटन स्वयं बहुत प्रभावित हुए, और उन्होंने नीग्रो जाति को भी मानवीय अधिकार देने का निश्चय कर लिया । फिलिप विटले नामक क्रान्तिकारिणी महिला के प्रति आज भी अमेरिका में
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