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प्राक्कथन
जैन साहित्य भारतीय साहित्य की एक अनमोल निधि है । जैन मनीषियों का चिन्तन व्यापक और उदार रहा है । उन्होंने भाषावाद, प्रान्तवाद, जातिवाद, पंथवाद की संकीर्णता से ऊपर उठकर जन-जीवन के उत्कर्ष के लिए विविध भाषाओं में विविध विषयों पर साहित्य का सरस सृजन किया है । अध्यात्म, योग, तत्वनिरूपण, दर्शन न्याय, काव्य, नाटक, इतिहास, पुराण, नीति, अर्थशास्त्र, व्याकरण कोश, छन्द, अलंकार, भूगोल- खगोल, गणित- ज्योतिष, आयुर्वेद, मन्त्र, तन्त्र, संगीत रत्न- परीक्षा, प्रभृति विषयों पर साधिकार लिखा है और खूब जमकर लिखा है । यदि भारतीय साहित्य में से जैन साहित्य को पृथक कर दिया जाय तो भारतीय साहित्य प्राणरहित शरीर के सदृश परिज्ञात होगा ।
जैन साहित्य मनीषियों ने विविध शैलियों में अनेक माध्यमों से अपने चिन्तन को अभिव्यक्ति दी है । उनमें एक शैली कुलक भी है । 'कुलक' साहित्य के नाम से भी जैन चिन्तकों ने बहुत कुछ लिखा है । दान, शील, तप, भाव, ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि अनेक जीवनोपयोगी विषयों पर पृथक-पृथक कुलकों का निर्माण किया है । मैंने अहमदाबाद बम्बई, पूना जालोर, खम्भात आदि में अवस्थित प्राचीन साहित्य भण्डारों में विविध विषयों पर 'कुलक' लिखे हुए देखे हैं पर इस समय विहार यात्रा में होने के कारण साधनाभाव से उन सभी कुलकों का ऐतिहासिक पर्यवेक्षण प्रस्तुत नहीं कर पा रहा हूँ ।
मैं जब बहुत ही छोटा था तब मुझे परम श्रद्धय सद्गुरुवर्य ने 'गौतम कुलक याद कराया था । मैंने उसी समय यह अनुभव किया कि इस ग्रन्थ में लेखक ने बहुत ही संक्ष ेप में विराट भावों को कम शब्दों में लिखकर न केवल अपनी प्रकृष्ट चिन्तन शील प्रतिभा का परिचय दिया है, बल्कि कुशल अभिव्यंजना का चमत्कार भी प्रदर्शित किया है ।
गौतम कुलक वस्तुत: बहुत ही अद्भुत व अनूठा ग्रन्थ है । यह वामन की तरह आकार में लघु होने पर भी भावों की विराटता को लिए हुई है। एक-एक लघु सूक्ति और युक्ति को स्पष्ट करने के लिए सैकड़ों पृष्ठ सहज रूप से लिखे जा सकते हैं । ' गौतम कुलक' के कुछ चिन्तन वाक्य तो बहुत ही मार्मिक और अनुभव से परिपूर्ण है । एक प्रकार से प्रत्येक पद स्वतन्त्र सूक्ति है, स्वतन्त्र जीवनसूत्र है और है विजय
मन्त्र |
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