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५० से ८० तक
आठवें भाग में प्रसिद्ध ग्रन्थ ' गौतमकुलक' पर दिए गए २० प्रवचन हैं । तथा नवें भाग में प्रवचन संख्या २१ से ४० तक के २० प्रवचन हैं । दसवें भाग में ४१ से ४६ तक कुल १६ प्रवचन हैं । ग्यारहवें भाग में २१ प्रवचन हैं । ' गौतमकुलक' जैन साहित्य का बहुत ही विचार - चिन्तनपूर्ण सामग्री से भरा सुन्दर ग्रन्थ है। इसका प्रत्येक चरण एक जीवनसूत्र है, अनुभूति और संभूति का भंडार है । ग्रन्थ परिमाण में बहुत ही छोटा है, सिर्फ बीस गाथाओं का, किन्तु प्रत्येक गाथा के प्रत्येक चरण में गहनतम विचार - सामग्री भरी हुई है । अगर एक-एक चरण पर चिन्तन-मनन किया जाये तो भी विशालविचार साहित्य तैयार हो सकता है ।
श्रद्धेय आचार्य सम्राट ने अपने गहनतम अध्ययन-अनुभव के आधार पर इस ग्रन्थ के एक-एक सूत्र पर विविध दृष्टियों से चिन्तन-मनन- प्रत्यालोचन कर जीवन का नवनीत प्रस्तुत किया हैं । इन प्रवचनों में जहाँ चिन्तन की गहराई है, वहाँ जीवन जीने की सच्ची कला भी है। गौतम कुलक के इन प्रवचनों को हम लगभग पाँच भाग में क्रमशः प्रकाशित करेंगे । प्रथम खण्ड पाठकों की सेवा में दो वर्ष पूर्व पहुँचा था । गौतम कुलक पर प्रवचनों का द्वितीय खण्ड, तृतीय खण्ड और चतुर्थ खण्ड भी छप चुका है आशा है, पाठक अगले खण्ड ५ की भी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करेंगे ।
इन प्रवचनों का सम्पादन यशस्वी साहित्यकार विद्वान लेखक मुनिश्री नेमीचन्द जी महाराज का भी समय-समय पर मिलता रहा है । हम उनके पुस्तक पाठकों को पसन्द आएगी ।
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श्रीचन्द जी सुराना ने किया है । मार्गदर्शन एवं उपयोगी सहकार आभारी हैं। आशा है यह प्रवचन
मन्त्री
श्री रत्न जैन पुस्तकालय
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