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जितात्मा ही शरण और गति-
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साथ लटके हुए लहूलुहान उन घुड़सवारों की तरह हैं, जिनके घोड़े भी घायल हैं, स्वयं भी घायल हैं। जिन्हें अपने मनरूपी घोड़े पर सवारी करना नहीं आता, उनकी यह जीवनयात्रा भारभूत ही सिद्ध होती है। वे मनरूपी घोड़े पर सवार नहीं हैं, मनरूपी घोड़ा ही उन पर सवार है। जो अपने मनरूपी घोड़े को मार-पीटकर घायल करके नहीं, उसके दर्शक बनकर धीरे-धीरे प्रेम से, आत्मीयता से अपने अनुकूल बना लेते हैं, अपनी इच्छा से चलाते हैं, वे ही सच्चे सवार हैं । मनोविजय का यही रहस्य है।
मन पर नियंत्रण करने की सही विधि ज्ञात न होने से आज अधिकांश साधक उसे ठोक-पीटकर मारना चाहते हैं, परन्तु मनोविजय मारने से नहीं, साधने से होती है । मनुष्य की सेवा में मन हर घड़ी ताबेदार सेवक की तरह तैयार खड़ा रहता है, वह कभी थकता नहीं, रुकता नहीं, कभी बूढ़ा नहीं होता, सतत उद्यम उसका स्वभाव है, इच्छाएं करते रहना और उनकी पूर्ति के पीछे भागते फिरने में ही उसे आनन्द आता है । मन की शक्ति अपार है, वह सब कुछ कर सकता है, परन्तु उसमें स्वेच्छाचारिता का दुर्गुण है, जिसके कारण वह अनियंत्रित रहता है । अनियंत्रित मन मनुष्य को पथभ्रष्ट कर देता है, वह जीवनलक्ष्य की ओर न ले जाकर इन्द्रियसुखों के बीहड़ में ले जाता है, वहाँ किसी न किसी रोग, शोक, कलह, कुसंग, कुमार्ग या कुटेब से टकरा कर जीवन नष्ट कर देता है ।
मनुष्य का मन पारे की तरह है । अशुद्ध पारा खा लेने पर जीवन से हाथ धोने की नौबत आजाती है, किन्तु वही पारा जब शुद्ध और संस्कारित हो जाता है तो अमूल्य औषधि बन जाता है । संस्कारहीन मन अशुद्ध पारे के समान मानव-जीवन को नष्ट-भ्रष्ट कर डालता है, जबकि सुसंस्कृत और विशुद्ध मन जीवन को उन्नत, सुखी, महान्, उच्च और पवित्र बना देता है । मन की शक्तियां विलक्षण हैं। इसीलिए कहा गया है
जितं जगत् केन ? मनो हि येन । -जगत् को किसने जीता ? जिसने मन को जीत लिया, उसने जगत् को जीत लिया।
. 'मनोविजेता जगतो विजेता" -मन का विजेता जगत् का विजेता है।
जिसे आँखें नहीं देख सकती, कान नहीं सुन सकते, मन उसे भी आसानी से ग्रहण कर सकता है; बशर्ते कि उसकी चंचलता को रोककर पारदर्शी स्फटिक की तरह स्वच्छ बनाया जा सके । यद्यपि श्रोत्रादि इन्द्रियों का सहारा लेकर ही मन विषयों का सेवन करता है, तथापि कई बार इन्द्रियों का आश्रय लिये बिना भी मन विषयों और कषायों का चिन्तन, सेवन और आस्वादन करता है। इसलिए मन की प्रवृत्तियों पर चौकसी रखना और सतर्क रहना बहुत आवश्यक है । यदि मन असह
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