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आनन्द प्रवचन : भाग ११
निश्चित दिन घोड़े बाहर निकाले गये । सातों सवार उपस्थित हुए। हजारों दर्शक इस घुड़दौड़ को देखने आये । सवारों के चढ़ते ही घोड़े उन्हें ठीक रास्ता छोड़कर जंगल की ओर ले भागे। उन घोड़ों को काबू में लेना बहुत ही मुश्किल था। सवार उन घोड़ों की पीठ पर अवश्य बैठे थे, लेकिन नहीं जैसे ही थे । घोड़ों पर उनका कोई काबू न था । फलतः थोड़ों को वे सवार नहीं, घोड़े ही सवारों को लेकर रफूचक्कर हो गये।
एक दिन बीता, दो दिन बीते, अभी तक उन सवारों और घोड़ों का कोई पता नहीं लगा। सभी चिन्तातुर थे। तभी तीसरे दिन एक घुड़सवार लहूलुहान एवं घायल हालत में लौटा । घोड़ा भी घायल था। उसके बाद दूसरे ५ सवार भी उसी तरह लहलहान एवं घायल अवस्था में लौटे । जो पहला सवार था. वह अभी तक नहीं लौटा था । सातवां दिन हो गया, तब भी उसका कोई अता-पता न था । सभी लोग सोचने लगे—वह खत्म हो गया है, अब लौटने वाला नहीं। परन्तु सभी के आश्चर्य के बीच सातवें दिन सूर्यास्त से पहले ही वह गीत गुनगुनाता हुआ आ पहुँचा । वह और उसका घोड़ा दोनों ही स्वस्थ और प्रसन्न थे। उसमें अत्यन्त उमंग थी, घोड़े की आँखों में भी अपने सवार के प्रति कृतज्ञता और प्रेम था।
राजा ने उसे देखकर धन्यवाद देते हुए कहा- 'शाबाश युवक ! सातों में तुम ही अकेले सच्चे सवार लगते हो, बाकी के कोई सच्चे सवार नहीं हैं, उनकी सवारी घोड़ों ने ही की है।" राजा ने उस सवार को सेनापति बना दिया ।
जो रहस्य सेनापति बने हुए सवार की सवारी का है, वही यहाँ मनरूपी घोड़े की सवारी का रहस्य है । वह सवार केवल ४ दिन घोड़े के साथ रहा। उसने सवार न बनकर साथी बनने की कोशिश की। इसलिए उसने घोड़े की लगाम भी नहीं छुई, न घोड़े को दिशादर्शन किया, न कोई इशारा ही किया । वह घोड़े की पीठ पर था, पर नहीं जंसा ही। घोड़े को यह मालूम नहीं पड़ने दिया कि वह है । घोड़ा पहले तो स्वच्छंदी और खुल्ला था, सवार केवल दर्शक था। घोड़ा जब थक जाता तो वह उसे विश्राम देता था, तथा उसके लिये भोजन और छाया की व्यवस्था करता था। जब वह पुनः तरोताजा होकर दौड़ने को तैयार होता, सवार चुपके से उसकी पीठ पर सवार हो जाता, मानो सवार, सवार नहीं, केवल दर्शक है। उसके इस व्यवहार से घोड़ा चार ही दिनों में उसका मित्र बन गया, वह विनीत और कृतज्ञ हो गया । जो अब तक पराया था, शत्रु-सा था, वह मित्र हो गया। अब वह सवार की इच्छा के अधीन होकर चलने लगा। यही उस सवार की उस घोड़े पर विजय थी।
बन्धुओ ! इस संसार में लगभग तीन अरब मनुष्य होंगे। उन सभी को एकएक घोड़ा मिला हुआ है । पर मैं आपसे पूछता हूँ कि उनमें से सच्चे सवार कितने हैं ? मेरी दृष्टि से उनमें से सच्चे सवार इनेगिने ही निकलेंगे, अधिकांश तो घोड़े के
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