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________________ जितात्मा ही शरण और गति - १ ३३ यह कोई बात नहीं है कि स्वभाव बिलकुल बदल ही न सके । परिस्थिति, प्रबल निमित्त या अन्य विशिष्ट कारणों से मनुष्य की वर्षों से पड़ी हुई आदत, प्रकृति स्वभाव या नेचर बदल जाती है, और जब बदलती है तो एक झटके में बदल जाती है । जो वर्षों से शराब पीते थे, मांस खाते थे, उन्होंने साधुओं के सत्संग से एक ही दिन में सभी बुरी आदतें छोड़ दीं । अतः स्वभावविजेता अपने जीवन में किसी भी दुर्व्यसन, बुरी आदत, कुटेब, स्वभाव, खोटी प्रकृति आदि को फटकने नहीं देता, वही जितात्मा कहलाता है । बन्धुओ ! यह जितात्मा का चौथा अर्थ है । अभी मुझे इसके तीन अर्थों पर और प्रकाश डालना है । अगले प्रवचन में ही अवशिष्ट अर्थों पर प्रकार डाला जाएगा । आप जितात्मा के प्रत्येक अर्थ पर बारीकी से चिन्तन-मनन करें और अपना जीवन जितात्ममय बनाने का प्रयत्न करें। तभी आप दूसरों के लिए महावृक्ष की तरह शरणदाता और सूर्य की तरह दूसरों के लिए गति प्रगति के प्र ेरणादाता बन सकेंगे । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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