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________________ ३२ आनन्द प्रवचन : भाग ११ स्वभाव बनाम आदत इसके अतिरिक्त स्वभाव का एक और लोकव्यवहार में प्रचलित अर्थ हैअपना स्वभाव, प्रकृति, नेचर या आदत । अपने स्वभाव पर काबू पा लेना भी स्वभावविजय का अर्थ है । कई मनुष्यों की आदतें किसी न किसी व्यसन की हो जाती हैं, कोई तम्बाकू पीता है, तो कोई बीड़ी-सिगरेट पीने लगता है, कोई गांजा, भांग, अफीम या शराब पीने का आदी बन जाता है, किसी की आदत चोरी करने की हो जाती है, कोई परस्त्रीगामी या वेश्यागामी बन जाता है । अथवा किसी की प्रकृति बहमी बन जाती है, वह बात-बात में शंका-कुशंका करने लग जाता है । कोई स्वभाव से गुस्सल, क्रोधी, कपटी, दुराचारी, झक्की, कंजूस, खर्चीला, बात-बात में गालीगलौज करने वाला, जिद्दी, बातूनी, झूठी शेखी बघारने वाला आदि हो जाता है। असंख्य प्रकार के अच्छे और बुरे स्वभाव हैं। परन्तु प्रायः देखा जाता है कि जिसका जैसा स्वभाव पड़ गया, फिर उसे उस स्वभाव का बदलना दुष्कर हो जाता है, अतः स्वभाव विजेता के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि वह किसी भी प्रकार की खोटी आदत, बुरे स्वभाव, खराब प्रकृति, कुटेब आदि को जीवन में स्थान न दे, अपने पर हावी न होने दे । जब भी कोई वस्तु अपने स्वभाव में परिणत होने लगे कि प्रारम्भ में हो उसे बदल दे, उसको वहीं से समाप्त कर दे, उसका मूल ही नाबूद कर दे, अन्यथा, एक बार किसी बुरे स्वभाव, बुरी आदत, कुटेब या खराब प्रकृति को प्रश्रय दे दिया तो फिर वह आदत उसके जीवन में घर कर जायेगी, वह उसके काबू से बाहर हो जायेगी। एक राजस्थानी कहावत प्रसिद्ध है काजल' तजैन श्यामता, मोती तजै न श्वेत । दुर्जन तजै न दुष्टता, सज्जन तजे न हेत ॥ ये सब स्वभाव के नमूने हैं । एक दयालु व्यक्ति ने एक बिच्छू को पानी में डूबते हुए देखा तो उसे बहुत दया आई कि बेचारा पानी में डूबकर मर जाएगा। उसने बिच्छू को हाथ से पकड़ कर बाहर निकाला । परन्तु बिच्छू अपना स्वभाव कैसे छोड़ सकता था ! बिच्छू तो बिच्छू ही जो ठहरा ! उसने दयालु पुरुष के हाथ पर डंक मारा, बेचारे दयालु के हाथ में बिच्छू के काटने से असह्य पीड़ा होने लगी। फिर उसने दया करके बिच्छू को एक और सुरक्षित स्थान में छोड़ दिया। किन्तु बिच्छ फिर रेंगता-रेंगता पानी में चला गया; और तड़फने लगा। दयालु पुरुष को फिर दया आई। उसने उिच्छू को पुनः हाथ से पकड़कर बाहर निकाला तो पुनः उसके हाथ पर डंक मारा । एक तटस्थ दर्शक ने दयालु से कहा- "जब यह बिच्छू आपके उपकार को कुछ नहीं समझता है तो आप इसे दया करके क्यों पानी में से निकालते हैं ?" उसने कहा-“बिच्छू का स्वभाव है-काटना, मेरा स्वभाव है—दया करना । जब यह अपना कुस्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं अपना सुस्वभाव क्यों छोड़ दूं?" Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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