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________________ जितात्मा ही शरण और गति-१ २६ जितात्मा राजसी और तामसी बुद्धि से निर्णय न करके सात्त्विक बुद्धि से झटपट शुद्ध निर्णय कर लेता है । चंचल और मारक बुद्धि के प्रवाह में बह जाने वाला व्यक्ति भयों और प्रलोभनों से घिर जाता है, संकट के समय भी अपनी विकारयुक्त बुद्धि के कारण यथार्थ निर्णय नहीं कर पाता। सात्त्विक बुद्धि का धनी संकट के समय भी ‘अपना सन्तुलन नहीं खोता और न ही घबराकर हायतोबा मचाता है। विजितात्मा अपनी बुद्धि को अपने कंट्रोल में रखता है, वह मादक एवं नशीली वस्तुओं का सेवन करके अपनी बुद्धि को लुप्त नहीं करता। न ही वह संकट या विपत्ति के समय अपना गौरव खोकर दूसरों के सामने सहायता के लिये गिड़गिड़ाता है। ___ एक बार चीन के महान् दार्शनिक कन्फ्यूशियस से उनके कुछ शिष्यों ने पूछा- "गुरुदेव ! सच्चा बुद्धिमान कौन होता है ? उसकी क्या पहिचान है ?" कन्फ्यूशियस ने सब शिष्यों को थोड़ी देर तक बैठकर प्रतीक्षा करने को कहा । वे बैठ गये । कन्फ्यूशियस ने अपनी शेष दिनचर्या पूरी की, वस्त्र पहने और सब शिष्यों को लेकर एक ओर चल पड़े । सब लोग एक गुफा में प्रविष्ट हुए । वहाँ एक तापस रहते थे, जो जप-तप और भजन किया करते थे। कन्फ्यूशियस ने उन्हें प्रणाम किया और एक ओर बैठ गये। फिर शान्त होकर पूछा-"भगवन् ! हम आपसे ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने आये हैं। बताइए, वह कौन है ? क्या है ? कहाँ रहता है ?" महात्मा यह सुनते ही भभक उठे-“तुम लोग मेरी शान्ति भंग करने क्यों आये हो ? भागो यहाँ से ! मेरे भजन में विघ्न मत डालो।" कन्फ्यूशियस अपने शिष्यों को लेकर बाहर निकले । उन्होंने शिष्यों से कहा"एक बुद्धिमान तो यह है, जो संसार के प्रति आंखें मूदे हुए है। संसार की सुखदुःखमयी परिस्थिति के प्रति उपेक्षा किये हुए है। एकान्त, अलग-थलग रहकर अपनी बुद्धि को शान्त रखने में इनका विश्वास है।" वहां से चलकर वे एक गांव में पहुँचे, जहाँ एक तेली कोल्हू चला रहा था, बैल की आँखें बन्द थीं, वह अपनी मस्त चाल में उतने-से दायरे में चल रहा था। तेली कोल्हू पर बैठा अपनी मस्ती में कुछ गा रहा था। कन्फ्यूशियस ने उससे कहा-"भाई ! कोई ब्रह्मज्ञान की बात सुनाओ।" तेली ने हंसकर कहा-"भाई ! यह बैल ही मेरा ब्रह्म है, मेरा परमात्मा है। मैं इसकी सेवा करता हूँ, यह मेरी सेवा करता है । बस, हम दोनों सुखी हैं, सुख ही ब्रह्म है।" कन्फ्यूशियस उसकी बात सुनकर आगे बढ़े और शिष्यों से कहा-"यह मध्यम श्रेणी का बुद्धिमान है, यद्यपि इसकी बुद्धि भी संकुचित दायरे में बन्द है । यह बुद्धि भी विकृत है ।" बातचीत करते हुए वे एक बुढ़िया के दरवाजे पर आकर रुके। बुढ़िया चर्खा कात रही थी। उसके आसपास कई बच्चे शोरगुल मचा रहे थे । बीच-बीच में किसी बालक के पानी माँगने पर वह पानी पिला देती, कभी किसी नटखट बालक को प्रेम Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004014
Book TitleAnand Pravachan Part 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnand Rushi, Shreechand Surana
PublisherRatna Jain Pustakalaya
Publication Year1981
Total Pages374
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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