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जितात्मा ही शरण और गति-१
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डटा रहता हो, धैर्यपूर्वक आनेवाले संकटों का सामना करता हो, परीषहों और उपसों के तूफानों के समय धीरतापूर्वक उन्हें सहन करता हो। जरा-सा भी, मन से भी विचलित न होता हो । धीरपुरुष का लक्षण कवि कालिदास ने बताया है
विकारहेतो सति विक्रियन्ते,
येषां न चेतांसि ते एव धीराः। -विकार उत्पन्न होने का कारण उपस्थित होने पर भी जिनके चित्त विकृत नहीं होते, वास्तव में वे ही धीर पुरुष हैं ।'
संकटकाल में ही साधक के धर्य की परीक्षा होती है; यों तो साधारण व्यक्ति' भी कह सकता है कि मैं अपने धर्म पर दृढ़ हूँ, विचलित नहीं होता। मगर समय आने पर वे धैर्य पर कितने अडोल रहते हैं ? इसका पता लग जाता है । भर्तृहरि ने नीतिभतक में धैर्य-विजयी धीरों का लक्षण बताया है
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु, लक्ष्मीः समाविशतु, गच्छतु वा यथेष्टम् । अद्य व वा मरणमस्तु युगान्तरे वा,
न्याय्यात् पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः । -नीतिज्ञ पुरुष चाहे निन्दा करें या प्रशंसा, लक्ष्मी आये, चाहे जाये, चाहे आज ही मृत्यु आ जाये, अथवा युगान्तर में आये, किन्तु धीरपुरुष अपने स्वीकृत न्याययुक्त पथ से एक कदम भी विचलित नहीं होते।
वास्तव में, संकट आ पड़ने पर अपने धैर्य के सिवाय मनुष्य को संकट से कोई उबार नहीं सकता । निशीथभाष्य में कहा है
धिती तु मोहस्स उवसमे होति । -मोह का उपशम होने पर ही धृति (धीरता) होती है।
बृहत्कल्पभाष्य में बताया है कि “ऐसा कौन-सा कठिन कार्य है, जिसे धैर्यवान व्यक्ति सम्पन्न न कर सकता हो ?" धैर्य के फल हमेशा मीठे होते हैं।
अतः धैर्यविजेता का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति धैर्य धारण करके संकटों, परीषहों, उपसगों, या तूफानों के समय विचलित नहीं होता, वह उनका सामना करके उनसे जूझता हुआ अन्त में विजय प्राप्त कर लेता है, यहां मध्यमपदलोपी कर्मधारय समास करने से यह अर्थ संगत बैठेगा।
इस सम्बन्ध में बौद्धग्रन्थ जातक की एक कथा मुझे याद आ रही हैएक सेठ का लड़का जहाज द्वारा विदेश यात्रा के लिए तैयार हुआ। उसके
१. कुमारसम्भव १/५६ । ३. निशीथभाष्य ८५। .
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२. भर्तृहरि-नीतिशतकम् ८४ ।
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